Canadian Scientist ने पलायन के बाद कश्मीरी पंडितों में 'Genetic Changes' पर Study शुरू की

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Published By Ashpreet
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जम्मू। कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन के अगले साल जनवरी में 33 साल पूरे होने वाले हैं, ऐसे में कनाडा की एक वैज्ञानिक ने पिछले तीन दशकों में समुदाय के सदस्यों के बीच आए आनुवांशिक परिवर्तन पर अध्ययन शुरू किया है। कनाडा की एक दवा कंपनी में वैज्ञानिक डॉ. अर्चना कौल ने जम्मू में कहा, मैं नव स्थापित जोनाराजा संस्थान की मदद से यह अध्ययन कर रही हूं। आनुवंशिकी और डीएनए के पैटर्न में बदलाव का अध्ययन करना मेरा सपना था।

जोनाराजा इंस्टीट्यूट ऑफ जेनोसाइड एंड एट्रोसिटी स्टडीज कश्मीरी पंडित समुदाय के बुद्धिजीवियों के एक समूह द्वारा स्थापित एक ऑनलाइन मंच है। इस विषय पर काम करने के इच्छुक लोगों को एक मंच प्रदान करने के मकसद से यहां 18 दिसंबर को आधिकारिक तौर पर इसे शुरू किया गया।

कौल ने कहा, हमारी टीम ने दुनिया में विभिन्न प्रकार के नरसंहार का सामना कर चुके लोगों की समीक्षा की है। इसके लिए हम कई वैज्ञानिकों से बात कर रहे हैं। हम अच्छी प्रयोगशाला मिलने की भी उम्मीद कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, एक बार सभी आवश्यक प्रक्रिया पूरी होने, खासकर प्रयोगशाला मिलने पर हम परीक्षण शुरू करेंगे। जेनेटिक एक्सप्रेशन, जीन मैनिपुलेशन, रिकॉम्बिनेंट डीएनए, प्रोटीन टेक्नोलॉजी और माइक्रोआरएनए के लिए मॉलिक्यूलर क्लोनिंग में व्यापक अनुभव रखने वाली कौल ने कहा कि इस परियोजना में एक से दो साल का समय लग सकता है। उन्होंने कहा, हम एक प्रश्नावली के जरिये चार पीढ़ियों के समूहों से जवाब प्राप्त कर रहे हैं। हम उनकी स्थितियों का अध्ययन करेंगे।

कौल ने बताया कि इस प्रक्रिया के बाद टीम उनके रक्त के नमूने लेगी। उन्होंने कहा, हमें प्रत्येक चार पीढ़ियों के लोगों के कम से कम 50 नमूने की जरूरत होगी।

जिस पीढ़ी के परदादा भी मौजूद होंगे, हमें उनके अधिक नमूनों की आवश्यकता पड़ेगी। यह प्रक्रिया शुरू हो गई है। जोनाराजा इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष टीटू गंजू ने बताया कि यह परियोजना 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद उनके आनुवांशिकी में आए बदलाव का अध्ययन करने के लिए है। उन्होंने कहा कि अध्ययन से पलायन के दुष्प्रभावों के बारे में नए पहलू सामने आएंगे और यह पता चलेगा कि इनसे निपटा जा सकता है या फिर ये स्थायी हैं।

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