बहराइच: किसान के खेत में पहुंचकर कृषि वैज्ञानिकों ने देखी लहसुन की खेती, दी ये सलाह

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Published By Deepak Mishra
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अमृत विचार, बहराइच। चितौरा विकास खंड के ग्राम कौआ कोडरी में किसान द्वारा प्राकृतिक खेती शुरू की गई है। खेत में लगे लहसुन की फसल का निरीक्षण कर नमी बरकरार रखने के साथ अन्य जानकारी किसान को कृषि विज्ञानिकों ने दी। आचार्य नरेन्द्रदेव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र बहराइच प्रथम प्राकृतिक खेती के बारे में किसानों को जागरूक कर रहा है। इसके तहत विकास खंड चितौरा के  ग्राम कौआ कोडरी में मंगलवार को कृषि वैज्ञानिक पहुंचे। 

वैज्ञानिकों ने खेत में भ्रमण कर अच्छादन से लहसुन की प्रजाति जी 50 की फसल देखा। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक अध्यक्ष डॉ वी पी शाही ने बताया कि भूमि की नमी को सुरक्षित करने व जीवाणु एवं केंचुआ के कार्य करने हेतु सूक्ष्म पयार्वरण तैयार करने के लिए इसे ढका जाता है। लहसुन की बुआई के बाद दो-तीन बार निराई की आवश्कता पड़ती है। अच्छादन से मृदा अधिक समय तक नमी बनाये रखती है। लाभप्रद जीवाणु उपलब्ध हो जाते है, जो मृदा की उर्वरता को बढाने में सहायक होते है। 

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साथ ही निराई गुडाई की आवश्यकता नही पड़ती है। उत्पादन भी अच्छा प्राप्त होती है। प्राकृतिक खेती के पंचामृत जीवामृत, बीजामृत, अच्छादन, वापसा एवं अन्त: फसल प्रमुख है।केंद्र के वैज्ञानिक सुनील कुमार ने बताया कि प्राकृतिक खेती जिसमें किसी बाहरी निवेश के प्रयोग तथा मिट्टी की बिना जूताई,  बिना गुडाई के किए फसल उत्पादन किया जाए उसे प्राकृतिक खेती कहते है। केंद्र द्वारा प्राकृतिक खेती के अन्तर्गत गेहूँ,  सरसो, अरहर, सरसो का प्रदर्शन लगाया गया है। इस दौरान किसान और अन्य मौजूद रहे।

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