राज्यों में सीमा विवाद

Amrit Vichar Network
Published By Om Parkash chaubey
On

असम व मेघालय के बीच सीमा विवाद को लेकर हिंसा की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि दो अन्य राज्यों में सीमा विवाद सुलगने लगा है। महाराष्ट्र और कर्नाटक सीमा पर स्थित बेलगावी समेत 814 गांवों को लेकर आमने-सामने हैं। हालांकि यह विवाद कोई नया नहीं है। 1956 से दोनों राज्य बेलगावी को अपने राज्य में शामिल करने की बात करते आ रहे हैं।

बीते सोमवार से दोनों राज्यों के बीच स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई कि बुधवार को महाराष्ट्र सरकार ने राज्य सड़क परिवहन निगम की अंतर्राज्यीय बस सेवा को ही प्रतिबंधित कर दिया। इससे पहले मंगलवार को कन्नड़ रक्षक वेदिका संगठन के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र की बसों में तोड़फोड़ की।

परिणाम स्वरूप महाराष्ट्र के नासिक में स्वराज संगठन के कार्यकर्ताओं ने भी कर्नाटक बैंक के साइन बोर्ड पर कालिख पोत कर अपना विरोध दर्ज कराया। एक लोकतांत्रिक देश में इस तरह की घटनाओं से गलत संदेश जाता है और गणतंत्र की परिकल्पना को भी चोट पहुंचती है। आश्चर्य इस बात का है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों ही राज्यों में भाजपा की ही सरकार है।

ऐसी घटनाएं  देश और भाजपा दोनों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण हैं। होना तो यह चाहिए था कि दोनों राज्य बैठकर बात करें ताकि इस स्थिति से बचा जा सके। भाजपा के शीर्ष नेताओं की भी यह जिम्मेदारी थी कि वे विवाद का विस्तार होने से रोकेते। समय रहते ऐसे प्रयास नहीं हुए और यदि हुए भी तो वे प्रभावशाली नहीं थे।

नतीजन मामूली विवाद ने बढ़ते-बढ़ते शत्रु राज्य जैसी स्थिति पैदा कर दी। यहां दोनों राज्यों को समझना चाहिए कि इस तरह के विवाद देश को गृहयुद्ध जैसी स्थिति में धकेल सकते हैं। विवाद की उपस्थिति अखंड भारत की परिकल्पना को भी प्रभावित करती है। राज्यों की ही नहीं केंद्र की भी ऐसी कोशिश होनी चाहिए कि ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण टकराव न होने पाएं।

ताकि संविधान की आत्मा को छलनी होने से बचाया जा सके। अतः गृह मंत्रालय की तरफ से तत्काल हस्तक्षेप करते हुए इस मसले को प्राथमिकता के आधार पर निपटाना होगा। इन राज्यों की जनता को भी चाहिए कि शत्रु राज्यों के नागरिकों सा बर्ताव न करके सरकारों पर दबाव डालें कि विवाद का हल निकाला जाए। जिससे राज्यों में अापसी मतभेद न हो और शांति व्यवस्था कायम हो सके।

संबंधित समाचार