हरे रामा हरे कृष्णा के जाप से बढ़ी सक्रियता, Kanpur IIT के विशेषज्ञों ने दिमाग की बढ़ी कार्यक्षमता को किया सिद्ध

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Published By Kanpur Digital
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कानपुर में आईआईटी के विशेषज्ञों ने कार्यक्षमता को किया सिद्ध।

कानपुर में आईआईटी के विशेषज्ञों ने दिमाग की बढ़ी कार्यक्षमता को सिद्ध किया है। इसमें शबद कीर्तन समेत अन्य धर्मों के रीति रिवाजों, धार्मिक शब्दों पर कार्य शुरू हो गए है।

कानपुर, [शशांक शेखर भारद्वाज]। सांस्कृतिक, रीति रिवाज और धार्मिक आयोजनों के समय बोले गए वाक्य और पंक्तियां न सिर्फ सुख, शांति और मन को आनंदित करती हैं, बल्कि दिमाग की एकाग्रता और सक्रियता को बढ़ावा देती हैं। यह बात IIT Kanpur के ह्युमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के विशेषज्ञों ने प्रमाणित की है।

उन्होंने इस शोध में दो दर्जन ऐसे युवाओं को लिया, जो कभी किसी धार्मिकता में शामिल नहीं रहे। उन्हें दो हफ्ते तक हरे रामा हरे कृष्णा…का प्रशिक्षण कराया गया। इसके बाद उनकी जांच हुई तो नतीजे चौंकाने वाले आए। सभी के दिमाग की कार्यक्षमता, सोचने, समझने की गुणवत्ता 95 फीसद या उससे अधिक मिली। शोध को अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस की प्रोसेडिंग में शामिल किया गया है।

हमारी बोली, पहनावा, रहन सहन, खान पान अलग होने के बावजूद देश में एकता, अखंडता और प्रेमभाव है। इसके पीछे वजह यहां की संस्कृति, रीति रिवाज, धार्मिक आयोजन हैं, जो आत्मियता और सदाचार का संदेश देती है। हर व्यक्ति अपने धर्म के मुताबिक अराध्य को याद करते हैं। अपनी इच्छा, कामना और मुराद के लिए बोले गए वाक्य और पंक्तियां जहां सुखद अहसास कराते हैं, वहीं दिमाग के न्यूरांस को सक्रिय कर देते हैं।

इस पर मानविकी और सामाजिक विज्ञान के प्रो. ब्रज भूषण और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा के निर्देशन में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की शोधार्थी स्वाति सिंह शोध कर रहीं हैं। 

दो समूह बनाकर हुआ शोध

प्रो. ब्रज भूषण के मुताबिक शोध के लिए दो समूह तैयार किए गए। पहले समूह में वह लोग शामिल रहे जो पिछले कई वर्षों से हरे रामा हरे कृष्णा…बोलते और सुनते आ रहे हैं, जबकि दूसरे में एकदम नए लोगों को शामिल किया गया। दूसरे समूह को दो हफ्ते तक लगातार आधे घंटे हरे रामा हरे कृष्णा…का उच्चारण कराया गया।

इसके बाद दोनों समूहों के लोगों की इलेक्ट्रोइन्सेफलोग्राम टेस्ट (ईईजी) कराई गई। पहले समूह की तो पहले ही ध्यान स्तर और एकाग्रता बढ़ी हुई थी, जबकि दूसरे समूह का ध्यान स्तर, क्रियाशील स्मृति, दिमाग की कार्यक्षमता 95 फीसद बढ़ी हुई मिली। शोध को इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन सिस्टम्स, मैन एंड साइबरनेटिक्स में प्रोसेडिंग में शामिल किया गया है।

दुखभरे गीत और नज्म पर कार्य

आईआईटी के विशेषज्ञ दुखभरे गीत और नज्म पर कार्य कर रहे हैं। वह जानना चाह रहे हैं आखिर क्या कारण है कि दुखभरे गीत, गजल और नज्म सुनने के बाद लोगों को अच्छा अनुभव होता है। विशेषज्ञों ने दुखभरे और भावुक शास्त्रीय संगीत पर कार्य कर लिया है।

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