उप्र: पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव रद्द करने की मांग
लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव रद्द करने की मांग की है। इसके साथ ही ऊर्जा निगमों के बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों व अभियंताओं को विश्वास में लेकर बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण में चल रहे सुधार के कार्यक्रम …
लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव रद्द करने की मांग की है। इसके साथ ही ऊर्जा निगमों के बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों व अभियंताओं को विश्वास में लेकर बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण में चल रहे सुधार के कार्यक्रम सार्वजनिक क्षेत्र में ही जारी रखने की भी मांग की।
संघर्ष समिति ने कहा कि पांच अप्रैल 2018 को ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा की उपस्थिति में पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ने संघर्ष समिति से लिखित समझौता किया है कि प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा। ऐसे में अब निजीकरण की बात करना समझौते का खुला उल्लंघन है| संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि ऊर्जा निगमों में कही भी निजीकरण करने की कोशिश हुई तो इसका प्रबल विरोध होगा और बिजली कर्मी आंदोलन करने को बाध्य होंगे।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र के प्रमुख पदाधिकारियों शैलेन्द्र दुबे, प्रभात सिंह, जीवी पटेल,जय प्रकाश, गिरीश पांडेय, सदरुद्दीन राना, सुहेल आबिद सहित कई और संगठनों के नेताओं ने जारी बयान में कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा द्वारा महामारी के दौर में बिजली कर्मियों द्वारा निर्बाध बिजली आपूर्ति बनाये रखने की बार-बार प्रशंसा किये जाने के बाद भी 23 जुलाई को केंद्रीय विद्युत मंत्री के साथ हुई वार्ता में पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव के समाचारों से बिजली कर्मियों को भारी निराशा हुई है और उनमे आक्रोश व्याप्त है।
उन्होंने कहा कि बिजली कर्मी ऊर्जा निगमों के सबसे प्रमुख स्टेक होल्डर हैं ऐसे में बिजली कर्मियों को विश्वास में लिए बिना नौकरशाहों के प्रस्ताव पर निजीकरण करना सर्वथा गलत और टकराव बढ़ाने वाला कदम होगा। संघर्ष समिति ने कहा है कि नौकरशाही के दबाव में किया गया बिजली बोर्ड का विघटन और निगमीकरण पूरी तरह विफल रहा है। वर्ष 2000 में बिजली बोर्ड के विघटन के समय मात्र 77 करोड़ रुपए का सालाना घाटा था जो अब 95000 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है।
संघर्ष समिति ने यह भी मांग की कि निजीकरण का एक और प्रयोग करने के पहले 27 साल के ग्रेटर नोएडा के निजीकरण और 10 साल के आगरा के फ्रेंचाइजीकरण की समीक्षा किया जाना जरूरी है।
