कोटा में नगर निगम दो भागों में बंटा, आवारा मवेशियों की जिम्मेदारी बांटने को तैयार नही

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Published By Vikas Babu
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कोटा। राजस्थान में कोटा के नगर निगम को दो भागों में बांट दिया गया है लेकिन पुनर्गठन के करीब दो साल बाद भी शहर में आवारा मवेशियों की धरपकड़ के बाद उन्हें रखने, देखभाल करने की जिम्मेदारी अभी भी पूरी तरह से नगर निगम दक्षिण को अकेले ही वहन करनी पड़ती है।

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नगर निगम (दक्षिण) की गौशाला समिति के अध्यक्ष का यह गंभीर आरोप है कि निगम प्रशासन शहर को कैटल-फ्री करने के नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल के प्रयासों पर पानी फेरने पर आमादा है।

उन्होंने बताया कि नगर निगम उत्तर कि न तो अभी तक अपनी कोई गौशाला है और ना ही का इन कायन हाउस। नगर निगम उत्तर में धाकड़खेड़ी में एक पुराना कायन हाउस है जिसे विकसित किए जाने का दावा किया जाता रहा है, लेकिन निगम प्रशासन ने अभी तक उसका उपयोग शुरू नहीं किया है।

अभी स्थिति यही है कि यदि कोटा उत्तर में कहीं से बेपरवाह छोड़े गए एक भी मवेशी को पकड़ा जाता है तो उसे कोटा दक्षिण के किशोरपुरा स्थित कायन हाउस या बंधा-धर्मपुरा की गौशाला में ले जाना पड़ता है। यहां तक कि दोनों नगर निगम में घायल मवेशियों को लाने के लिए मात्र दो एंबुलेंस हैं और दोनों ही निगम दक्षिण के अधिकार क्षेत्र की है।

अभी कोटा उत्तर क्षेत्र में घायल मिलने वाले मवेशियों को नगर निगम दक्षिण की एंबुलेंस से ही लाना और उसी के कायन हाउस या गौशाला में रखना पड़ता है। पिछले दिनों जब संक्रामक रोग लंपी का प्रकोप हुआ था, तब सबसे अधिक लम्पी पीड़ित गौवंश कोटा नगर निगम उत्तर क्षेत्र में मिले थे जिन्हे दक्षिण की किशोरपुरा स्थित कायन हाउस में रखकर इलाज करवाना पड़ा था।

इस संबंध में दक्षिण गोशाला समिति के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह जीतू पहले ही अपनी रिपोर्ट लिखित में निगम प्रशासन को सौंप चुके हैं और इन हालातों से लगातार महापौर और आयुक्त-उपायुक्त को अवगत कराते रहे रहते हैं लेकिन नगर निगम उत्तर की ओर से अभी तक शहर में पकड़े जाने वाले या बीमार मवेशियों को रखने की प्रथक व्यवस्था तक नहीं की गई है।

समिति को यह भी शिकायत है कि यदि निगम उत्तर के क्षेत्र में पकड़े गए किसी मवेशी को छुड़ाने की एवज में कोई राजस्व प्राप्त होता है तो वह अपनी हिस्सेदारी मांगने से नहीं चूकते। श्री सिंह जीतू ने गंभीर आरोप लगाया कि निगम प्रशासन आवारा मवेशियों के रखरखाव के मामले में गंभीर लापरवाही बरतते हुए कोटा शहर को कैटल- फ्री करने के नगरीय विकास मंत्री श्री धारीवाल के सपने को तोड़ने पर आमादा है।

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