देश की एकता

देश की एकता

भारत के लिए एकता एक विशिष्टता रही है। भारत राष्ट्रीय एकता की एक मिसाल है। जितनी विभिन्नताएं हमारे देश में उपलब्ध हैं उतनी शायद ही विश्व के किसी अन्य देश में देखने को मिलें। राष्ट्रीय एकता राष्ट्र को सशक्त एवं संगठित बनाती है। इसलिए देश की एकता दुश्मनों को हमेशा खटकती रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र …

भारत के लिए एकता एक विशिष्टता रही है। भारत राष्ट्रीय एकता की एक मिसाल है। जितनी विभिन्नताएं हमारे देश में उपलब्ध हैं उतनी शायद ही विश्व के किसी अन्य देश में देखने को मिलें। राष्ट्रीय एकता राष्ट्र को सशक्त एवं संगठित बनाती है। इसलिए देश की एकता दुश्मनों को हमेशा खटकती रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि देश की एकता को बाहरी नहीं अंदरूनी दुश्मन तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। हमें जातियों के नाम पर लड़ाने के लिए तरह-तरह की धारणाएं गढ़ी जाती हैं।

प्रान्तों के नाम पर हमें बांटने की कोशिश होती है। कभी एक भारतीय भाषा को दूसरी भारतीय भाषा का दुश्मन बताने के लिए अभियान चलाए जाते हैं। इतिहास को भी इस तरह पेश किया जाता है ताकि नागरिक एकजुट ना होने पाएं। पीएम मोदी गुजरात के केवड़िया में ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ समारोह को संबोधित कर रहे थे।

ध्यान रहे सैकड़ों वर्षों पहले जितने भी विदेशी आक्रांता आए, सभी ने भारत में विभेद पैदा करने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। आज भी देश की विघटनकारी ताकतें समाज में विभिन्न तरीकों से विष घोल कर लोगों को बांटने का काम कर रही हैं। कभी जाति के नाम पर तो कभी अन्य मुद्दों के सहारे समाज को कमजोर करने का प्रयास किया जाता है।

भारत एक एकीकृत सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संरचना वाला देश है। एकता की भावना लोगों को एक राष्ट्र में बांधती है। राष्ट्रीय एकता ही वह भावना है जो विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, जाति, वेश-भूषा, सभ्यता एवं संस्कृति के लोगों को एक सूत्र में पिरोए रखती है। अनेक विभिन्नताओं के बाद भी सभी परस्पर मेल-जोल से रहते हैं।

समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए इस तरह का एकीकरण महत्वपूर्ण रहा है। राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया व भावना है जो किसी राष्ट्र अथवा देश के लोगों में भाई-चारा , राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं अपनत्व का भाव प्रदर्शित करती है। देश में राष्ट्रीय एकता के लिए सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भाषावाद, उग्रवाद जैसी चुनौतियां खतरा पैदा करती हैं।

प्रधानमंत्री का कहना है कि तुष्टीकरण, परिवारवाद, लालच और भ्रष्टाचार भी देश को कमजोर करता है। कुछ का मानना है कि भारत में एकता बढ़ाने के लिए ‘एक देश-एक कानून’ सिद्धान्त पर काम करना चाहिए। किसी धर्म या राज्य आदि को कोई विशेष दर्जा नही मिलना चाहिए। सभी को देश की आंतरिक समस्या के बारे में समझना होगा, तब ही देश आंतरिक रूप से भी मजबूत बनेगा। संयम और सतर्कता इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत हैं। एक नागरिक के रूप में विघटनकारी ताकतों के खिलाफ हम सभी को एकजुटता से खड़ा होना चाहिए।

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