मुलायम सिंह यादव स्मृति शेष : एक रोशन दिमाग था न रहा, शहर में इक चराग…

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आशुतोष मिश्र (मुरादाबाद), अमृत विचार। एक रोशन दिमाग था न रहा, शहर में इक चराग था न रहा…। शायर की इस रचना के सहारे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के विश्वस्त बाबर खान उन्हें अपनी खिराजे अकीदत पेश करते हैं। वह नेताजी के निधन की मनहूस खबर से फफक पड़े। बोले, नियति के आगे सभी …

आशुतोष मिश्र (मुरादाबाद), अमृत विचार। एक रोशन दिमाग था न रहा, शहर में इक चराग था न रहा…। शायर की इस रचना के सहारे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के विश्वस्त बाबर खान उन्हें अपनी खिराजे अकीदत पेश करते हैं। वह नेताजी के निधन की मनहूस खबर से फफक पड़े। बोले, नियति के आगे सभी मजबूर हैं। लेकिन, देश को उनकी दरकार थी।

अमृत विचार से बातचीत में समाजवादी बाबर मुलायम सिंह से अपने रिश्तों के पन्ने पलटने में जुट जाते हैं। कहते हैं कि हम सभी चौधरी चरण सिंह के वॉलंटियर थे। वह (चरण सिंह) मुलायम सिंह को बहुत प्यार करते थे। इसी वजह से 1982 में लोकदल का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। तब मुझे मुरादाबाद नगर की जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 1985 से पहले नेताजी को नेता विरोधी दल बनवाया। 1987 में चौधरी साहब का निधन हो गया। उसके बाद उनका कुनबा बिखर गया। चौधरी साहब के बेटे अजित सिंह और मुलायम सिंह के बीच वैचारिक मतभेद उजागर हो गए। तब अजित सिंह अपने पसंदीदा सतपाल सिंह को नेता विरोधी दल बनवाने में कामयाब हो गए थे।

1989 के विधान सभा चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह चौ. अजित को यूपी के मुख्यमंत्री का चेहरा बनाना चाहते थे। लेकिन, मुलायम सिंह उन पर भारी पड़े। आंतरिक बैठक में वीपी सिंह के प्रस्ताव पर स्वयं को असरदार साबित करा लिया। पहली बार 1989 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। नेता जी सबको साथ लेकर चलने वाले आदमी थे। मतभेद के बाद भी बेनी प्रसाद वर्मा को भी राज्यसभा में भेज दिया। 1987 में मुलायम सिंह ने समाजवादी जनता पार्टी से अपने संबंध खत्म कर लिए।

1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना कर दी। सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल बाबर खान कहते हैं कि वह पिछड़ों, अति पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े हिमायती थे। चर्चा में बाबर खान मुलायम सिंह से अपने सीधे
संपर्कों की दुहाई देते हैं। कहते हैं कि साल 2015 में लखनऊ के लोहिया पार्क में एक गोष्ठी का आयोजन हुआ। नेता जी ने मुझे विशेष रूप 20 मिनट तकरीर का समय दिलवाया। डा.लोहिया पर मैंने अपने विचार रखे। वह जब कभी मुरादाबाद आए तो मेरे रिश्तों को प्रमाणित किया। इन चर्चाओं के बीच बाबर खान थोड़ी देर के लिए गुमसुम हो जाते हैं। उनकी आंखें नम हो जाती हैं।

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