150 साल के इतिहास में पहली बार परंपरा में खलल, दशहरे पर नहीं जला अल्मोड़ा में रावण का पुतला

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अल्मोड़ा, अमृत विचार।  मैसूर, कुल्लु मनाली और कोटा के बाद पूरे देश में अपनी भव्यता और आकर्षण के लिए प्रसिद्ध अल्मोड़ा के दशहरा महोत्सव में इस बार ऐसा खलल पड़ा कि डेढ़ सौ साल के दशहरा महोत्सव में पहली बार रावण का पुतला नहीं जल सका। पुतला समितियों के आपसी विवाद और दशहरा कमेटी की …

अल्मोड़ा, अमृत विचार।  मैसूर, कुल्लु मनाली और कोटा के बाद पूरे देश में अपनी भव्यता और आकर्षण के लिए प्रसिद्ध अल्मोड़ा के दशहरा महोत्सव में इस बार ऐसा खलल पड़ा कि डेढ़ सौ साल के दशहरा महोत्सव में पहली बार रावण का पुतला नहीं जल सका। पुतला समितियों के आपसी विवाद और दशहरा कमेटी की लापरवाही के कारण देर रात करीब ढ़ाई बजे रावण के पुतले को फिर उसी जगह खड़ा कर दिया गया। जहां पर उसका निर्माण किया गया था।

दशकों के इतिहास में पहली बार हुई यह घटना अब हर किसी की जुबां पर है।
हर वर्ष की तरह इस बार भी बुधवार को दशहरा पर्व पर सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में रावण परिवार के बनाए 22 पुतलों को जलाया था। जिसके लिए एचएनबी स्टेडियम को चुना गया था। निर्धारित समय पर पुतले टैक्सी स्टेंड के पास एकत्र हुए। जिसके बाद निर्धारित समय पर पुतलों को दहन के लिए स्टेडियम की ओर रवाना किया गया। लेकिन बाजार में रावण पुतला समिति के सदस्यों और पुतला समिति के एक सदस्य के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया और मामला हाथापाई तक पहुंच गया। पुतला समिति के सदस्य ने इस बात की शिकायत दशहरा कमेटी से की। जिसे दशहरा कमेटी से गंभीरता से नहीं लिया। यहां से विवाद और बढ़ गया और रावण के पुतले को फिर से चौक बाजार में रोक दिया। उसके पीछे आ रहे राम परिवार का रथ भी वहीं रोकना पड़ गया। यहां फिर से पुतला समिति और रावण का पुतला बनाने वाली नंदा देवी पुतला समिति के बीच विवाद पैदा हो गया।

हालात बिगड़ते देख पुलिस और प्रशासन के कुछ अधिकारियों ने दोनों पक्षों को समझाया और जैसे तैसे रावण का पुतला स्टेडियम गेट तक पहुंचा। लेकिन यहां पुतला समिति के पदाधिकारियों ने फिर से रावण पुतला कमेटी के सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। जिस पर विवाद बढ़ गया और बाद में रावण पुतला कमेटी ने स्टेडियम में रावत के पुतला दहन से इंकार कर दिया। रावण पुतला समिति के लोग रावण के पुतले को बाजार की ओर ले आए। चूंकि पुतले को बिना प्रशासन की अनुमति के कहीं अन्य स्थान पर नहीं जलाया जा सकता था। इसलिए पुतला समिति के सदस्यों ने रात करीब ढ़ाई बजे रावण के पुतले को वहीं खड़ा कर दिया। जहां उसका निर्माण किया था। सदस्यों ने सांकेतिक तौर पर रावण के एक सिर को अलग कर जलाया। लेकिन उनमें दशहरा कमेटी के खिलाफ काफी गुस्सा व्याप्त था। वहीं देर रात तक दशहरा कमेटी के पदाधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी करते दिखाई दिए।

दशहरे के दिन हुई यह घटना अब जहां नगर के लोगों के गले नहीं उतर रही है। वहीं पुतला समितियों और दशहरा कमेटी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। फिलहाल गुरुवार को यह मामला नगर में चर्चा का विषय बना रहा।

स्टेडियम में बने मंच में भी जमकर हुई गालीगलौच
विजयादशमी के दिन जहां असत्य पर सत्य की जीत के रूप में रावण परिवार के पुतलों का दहन किया जाता है। वहीं अल्मोड़ा में यह दिन पुतला समितियों और दशहरा कमेटी के विवाद का रण बन गया। पुतला समिति के लोग रावण पुतला समिति के सदस्यों पर कार्रवाई की मांग को लेकर मंच पर चढ़े तो रावण पुतला समिति के सदस्य भी वहां पहुंच गए। मंच पर ही गाली गलौच और अभद्र भाषा का प्रयोग होता रहा। लेकिन दशहरा कमेटी विवाद को सुलझा नहीं पाई। दशहरा समिति के भी कुछ पदाधिकारी इस बीच आवेश में आ गए। जिसने आग में घी डालने का काम किया। विवाद बढ़ते देख कई पदाधिकारी मंच से चुपचाप खिसक लिए। जबकि कार्यक्रम देखने आए लोग भी बड़ी अनहोनी की आशंका देख जल्दी जल्दी दर्शक दीर्घा खाली कर गए।

धरी की धरी रह गई सुरक्षा व्यवस्था
सांस्कृतिक नगरी में दशहरा महोत्सव दिन से ही विवादों की चिंगारी में सुलग चुका था। लेकिन इसके बाद भी किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को रोकने के लिए यहां की गई सुरक्षा व्यवस्था सफेद हाथी ही साबित हुई। पर्व के शांतिपूर्ण आयोजन के लिए अल्मोड़ा के अलावा सोमेश्वर व अन्य थानों की पुलिस यहां लगाई तो गई थी। लेकिन देर रात वह तमाशबीन बनी रही। दोपहर शुरू हुआ यह विवाद रात ढ़ाई बजे तक चलता रहा। लेकिन पुलिस के अधिकारी अपने वाहनों में साइरन बजाकर इधर उधर घूमते ही दिखाई दिए। स्टेडियम में मंच पर जब विवाद हो रहा था। जब वहां एक भी पुलिस कर्मी मौजूद नहीं था। सभी स्टेडियम में चहल कदमी करते दिखाई दे रहे थे। अगर पुलिस ने विवाद की इस चिंगारी को भांप लिया होता तो वह विरोध की इस आग में तब्दील नहीं हो पाती।

अनुशासनहीनता, नशा और राजनीतिक रंग ने किया माहौल खराब
दशहरा पर्व पर अनुशासन हीनता, नशा और कुछ लोगों द्वारा पर्व को राजनीतिक रंग देने के प्रयास ने पर्व के माहौल को बदरंग कर दिया। सांस्कृतिक नगरी में दशहरा महोत्सव को देखने के हर साल देश विदेश के सैलानी यहां आते हैं। इसलिए इस पर्व के आयोजन कि लिए कुछ समय से यहां अलग अलग व्यवस्थाओं के लिए समिति बनाने की व्यवस्था है। लेकिन बुधवार को दशहरे के दिन समितियों ने सभी समितियों व कमेटियों ने अनुशासन हीनता का परिचय देकर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली। ऊपर से महोत्सव देखने आए अधिकांश लोगों के नशे में होने के कारण भी पर्व का माहौल बदरंग हुआ। नगर के वरिष्ठ रंगकर्मियों की मानें तो इस तरह के आयोजनों को जिस तरह अब राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। वह इनके आयोजन के लिए सबसे खतरनाक है। पूर्व में मंझे मझाएं लोग इस तरह के आयोजनों का बीड़ा उठाते थे और उन्हें भव्य तरीके से सम्पन्न भी कराते थे। लेकिन अब अनुभवहीन लोगों के आने से सांस्कृतिक नगरी की संस्कृति अपना अस्तित्व बचाने को छटपटाने लगी है।