पितृपक्ष में कब पड़ेगा मातृ नवमी का श्राद्ध, जानें इसकी पूरी विधि और महत्व

Amrit Vichar Network
Published By Amrit Vichar
On

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पितृपक्ष में दिवंगत लोगों की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है, लेकिन पितृपक्ष के 16 दिनों में मातृ नवमी तिथि को किया जाने वाला श्राद्ध विशेष क्यों माना गया है। हिंदू धर्म में पितृपक्ष में पड़ने वाली मातृ नवमी के दिन परिवार से जुड़ी उन दिवंगत महिलाओं जैसे दादी, …

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पितृपक्ष में दिवंगत लोगों की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है, लेकिन पितृपक्ष के 16 दिनों में मातृ नवमी तिथि को किया जाने वाला श्राद्ध विशेष क्यों माना गया है। हिंदू धर्म में पितृपक्ष में पड़ने वाली मातृ नवमी के दिन परिवार से जुड़ी उन दिवंगत महिलाओं जैसे दादी, मां, बहन, बेटी आदि के लिए विशेष रूप से श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु सुहागिन के रूप में होती है। इसे अविधवा श्राद्ध भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन परिवार से जुड़ी महिलाओं के लिए विधि-विधान से श्राद्ध करने पर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिससे प्रसन्न होकर वे अपना आशीर्वाद आपके घर पर बरसाती हैं।

मातृ नवमी श्राद्ध की तारीख- 19 सितंबर 2022
मातृ नवमी श्राद्ध का कुतुप मूहूर्त- प्रात:काल 11:50 से दोपहर 12:39 बजे तक

कब करें मातृ नवमी का श्राद्ध
पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्णपक्ष की नवमी तिथि 18 सितंबर 2022 को सायंकाल 04:32 बजे से प्रांरभ होकर 19 सितंबर 2022 को सायंकाल 07:01 बजे तक रहेगी। इस दिन पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध हेतु सबसे उत्तम समय मानी जाने वाली 19 सितंबर को प्रात:काल 11:50 से दोपहर 12:39 बजे तक रहेगी। ऐसे में 19 सितंबर 2022 को इसी समय में मातृ नवमी का श्राद्ध करने का प्रयास करें।

कैसे करें मातृ नवमी का श्राद्ध
मातृ नवमी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और उसके बाद साफ कपड़े पहनकर कुतुप बेला में पितरों का विधि-विधान से श्राद्ध करें। इसके लिए सबसे पहले किसी एक सफेद चौकी या मेज पर दिवंगत महिला की तस्वीर रखें और यदि उनकी तस्वीर न हो तो वहां पर पूजा की सुपारी रख दें और उस पर फूल, तुलसी और गंगजल चढ़ाएं और उनकी फोटो के आगे तिल का दीपक और धूपबत्ती जलाएं। इस पूजा के बाद यदि संभव हो तो गरुड़ पुराण, गजेन्द्र मोश्र या भगवत गीता के नौवें अध्याय का पाठ करें अथवा सुनें। इसके बाद श्राद्ध के भोजन को दक्षिण दिशा में रखें और ब्राह्मण को भोजन कराएं और उसे सामर्थ्य के अनुसार दान करें। इस दिन पितरों को तांबे के लोटे में जल और काला तिल मिलाकर तर्पण करना बिल्कुल न भूलें।

ये भी पढ़ें : कब और किस कामना के लिए रखा जाता है जितिया व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व

संबंधित समाचार