मौत को मात दे गए लखनऊ के ‘अग्निवीर’, लेवाना होटल अग्निकांड में जान पर खेलकर बचाई पांच जिंदगियां

श्रीकांत मिश्र/लखनऊ। सामान्य जिंदगी जीने वाले ये ऐसे लोग हैं, जिनकी बहादुरी की चर्चा अब आम होगी। इनके सामने ‘शाबासी’ और ‘शुक्रिया’ सरीखे शब्द बहुत छोटे हैं। यही असली ‘हीरो’ हैं। इन्हें लखनऊ के ‘अग्निवीर’ की संज्ञा देना अतिश्योक्ति नहीं होगी। जान हथेली पर लेकर मौत को भी मात देने वाले ये ‘जांबाज’ साधारण कामगार …

श्रीकांत मिश्र/लखनऊ। सामान्य जिंदगी जीने वाले ये ऐसे लोग हैं, जिनकी बहादुरी की चर्चा अब आम होगी। इनके सामने ‘शाबासी’ और ‘शुक्रिया’ सरीखे शब्द बहुत छोटे हैं। यही असली ‘हीरो’ हैं। इन्हें लखनऊ के ‘अग्निवीर’ की संज्ञा देना अतिश्योक्ति नहीं होगी। जान हथेली पर लेकर मौत को भी मात देने वाले ये ‘जांबाज’ साधारण कामगार हैं। इन बहादुरों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पांच लोगों को मौत के मुंह से निकाला है। जसवंत, राधेश्याम, सोनू और आशीष चौहान लेवाना होटल अग्निकांड के असली हीरो हैं।

होटल के बगल गुलमोहर अपार्टमेंट में रहने वाली चिकित्सक के कार चालक आशीष चौहान ने मौत का ‘लाइव मंजर’ बयां किया। आशीष ने ‘अमृत विचार’ को बताया कि सुबह मेम साहब का फोन आया जल्दी आ जाओ, होटल में आग लग गई है। अपनी गाड़ी वहां से हटानी है। दस मिनट में मौके पर पहुंचते ही पहले मैंने कार सेफ की। उसके बाद देखा कि नजारा बड़ा भयावह है। आग की लपटें चारों तरफ से होटल के अंदर फैल चुकी हैं। कई लोग अंदर चीख-पुकार रहे हैं।

होटल के केयरटेकर जसवंत और राधेश्याम भैया ने मिलकर सीढ़ी लगाई। होटल के दाहिने हिस्से में थोड़ी झड़ी थी, वहीं से हथौड़ी मारकर खिड़की का शीशा तोड़ा गया। कानपुर के एक युवक को पहले निकाला। उतरते ही वह चीखते हुए भागा। फिर दूसरे से हाथ बढ़ाते हुए कहा भाई साहब मुझे भी बचा लीजिए, मेरा नाम अभिषेक है। जसवंत और राधेश्याम ने बताया कि कुल पांच लोगों को हम जैसे आम नागरिकों ने बाहर निकालने में मदद की।

कंधे पर लादकर लोगों को निकाला

होटल में बतौर कर्मचारी काम कर रहे सोनू ने भी बहादुरी दिखाई। रात एक बजे ड्यूटी खत्म हो गई तो वह होटल में ही रुक गया था। सुबह पाैने आठ बजे आग की लपटें देखीं तो गार्ड के साथ लोगों को कंधे पर लादकर बाहर निकाला। एक सिख परिवार था, उनका वजन अधिक था इसलिए उनकी कोई मदद नहीं हो सकी।

हमें लगा कि आज आखिरी दिन

होटल के कमरा नंबर 201 में ठहरे हल्दीराम के मैनेजर पीबी सिंह ने ‘अमृत विचार’ से कहा कि ‘हमें लगा कि आज आखिरी दिन है। महाकाल के आशीर्वाद से दो नौजवानों ने हमें बाहर आने में अपनी जान की बाजी लगा दी। रिसेप्शन से फोन आया कि होटल में पीछे की तरफ आग लग गई है। आप लोग तुरंत भागकर बाहर जाएं। कमरे से बाहर निकलते ही धुंए में कुछ दिख नहीं रहा था। सीढ़ियों से तीसरे माले पर पहुंचे, वहां से उल्टे पांव फिर भागे। बाहर झांका तो लोग टकटकी लगाए सिर्फ होटल को देख रहे थे। दो नौजवानों ने बगल से लंबी सीढ़ी लगाई और कांच तोड़कर बाहर निकलने में मदद की।’

न नक्शा, न ही अलार्म

होटल लेवाना में राहत कार्य के लिए पहुंचे बचाव दल को उस वक्त कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ा जब प्रबंधन ने होटल और अलार्म के नाम पर हाथ खड़े कर दिए। न तो पूरे होटल का कहीं नक्शा था, न ही कॉमन अलार्म। किसी तरह फायर टीम ने क्विक एक्शन चार्ट तैयार कर मोर्चा संभाला।

यह भी पढ़ें-लखनऊ: लेवाना होटल अग्निकांड की कहानी, सुनिए…पीड़ितों की जुबानी