चंदौसी में है ‘विघ्नहर्ता श्रीगणेश’ की नृत्य मुद्रा की इकलौती मूर्ति…पढ़ें पूरी खबर

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आशुतोष मिश्र, अमृत विचार। चंदौसी के लाला भूपाल दास अंग्रेजों से सताए गए। अंग्रेजी शासन में उनका कारोबार उजाड़ दिया गया। लेकिन, लाला ने अपनी संतानों में जुल्म के विरोध में तैयार किया। तीसरे बेटे प्रसिद्ध चिकित्सक डा. गिरिराज किशोर गुप्ता ने अमेरिका का बुलावा ठुकरा दिया। वह अविभाज्य मुरादाबाद के पहले एमडी फिजिशियन बने। …

आशुतोष मिश्र, अमृत विचार। चंदौसी के लाला भूपाल दास अंग्रेजों से सताए गए। अंग्रेजी शासन में उनका कारोबार उजाड़ दिया गया। लेकिन, लाला ने अपनी संतानों में जुल्म के विरोध में तैयार किया। तीसरे बेटे प्रसिद्ध चिकित्सक डा. गिरिराज किशोर गुप्ता ने अमेरिका का बुलावा ठुकरा दिया। वह अविभाज्य मुरादाबाद के पहले एमडी फिजिशियन बने। लेकिन,अपनी ही मिट्टी की सेवा का संकल्प कायम रखा। अब उनका देह रूप तो नहीं है। लेकिन, भगवान गणेश से उनकी अनुरक्ति इतिहास रचने को तैयार है।

चंदौसी में भगवान गणेश की नृत्य मुद्रा की मूर्ति नए रिकार्ड के लिए तैयार है। 145 फीट ऊंचाई की यह मूर्ति प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ.गिरिराज किशोर के सपने की जमानत है। वर्ष 2021 के दिसंबर महीने में भौतिक शरीर त्यागने वाले चंदौसी के दौरान गिरिराज किशोर गुप्ता के सपने और संकल्पों में इतिहास रच दिया है। 145 फीट ऊंचाई की यह मूर्ति अब किसी आध्यात्मिक पुरुष का इंतजार कर रही है, जो इसे लाेकार्पित कर दे। उपनगर के सीता रोड स्थित गणेश मंदिर के सामने गजानन परिसर में मूर्ति ने आकार लिया है। 35 वर्ग फीट के आधार स्तंभ पर मूर्ति खड़ी है। संभव है यह एशिया क्षेत्र में अपनी ऊंचाई की कीर्तिमान हो। अब हम बात करते हैं उस किरदार की, जिसने अपनी आंखों में भगवान का यह रूप बसाया।

प्रसिद्ध चिकित्सक डा. गिरिराज किशोर गुप्ता
प्रसिद्ध चिकित्सक डा. गिरिराज किशोर गुप्ता

डॉ.गिरिराज वर्ष 1954-56 में क्षेत्र के पहले एमडी बने। केजीएमसी लखनऊ से पढ़ाई पूरी की। तब अमेरिका से फ्री-आफ कॉस्ट स्टडी का बुलावा आया। लेकिन, उन्होंने अपनी चंदौसी को पंसद किया। अपने लंबे चिकित्सकीय सेवा की कमाई को तीन हिस्से में व्यवस्थित किया। 40 प्रतिशत निशुल्क मरीजों का इलाज किया। 30 प्रतिशत कमाई भगवान के नाम कर दिया और बाकी आमदनी से स्वयं का गुजर-बसर किया, बच्चों को पाला। साल 2005 में भगवान की मूर्ति निर्माण की शुरुआत की। करीब 15 साल के प्रयासों के बाद मूर्ति ने आकार ग्रहण कर लिया है।

डॉ.गुप्ता को मूर्ति बनाने का शौक था। उन्होंने राजस्थान के अजमेर से धवल संगमरमर पसंद किया। उससे ही सफेद मूर्ति तैयार कराई है। पांच बीघा जमीन में यह संकल्प खड़ा किया गया है। उनके चाहने वाले कहते हैं कि डॉ.गिरिराज ने मूर्ति के लिए किसी से एक पैसे का सहयोग नहीं लिया। दिल्ली, रुड़की सहित उड़ीसा के इंजीनियरों को बुलाकर मूर्ति डिजाइन कराई। उसका उन्हें मेहनताना दिया। हां, यह जरूर किया। वह मरीजों के इलाज के दौरान अपने पास एक गुल्लक रखते थे, जिसमें लोग अपनी इच्छा से कुछ धनराशि उस गुल्लक में छोड़ जाते थे।

डॉ. गुप्ता के इकलौते बेटे मनोज गुप्ता मीनू कहते हैं कि उन्हें भगवान गणेश की पूजा का जुनून था। उन्होंने यहां गणपति पूजा की शुरुआत की। भगवान की मूर्ति को हम सभी लोकार्पित कराना चाहते हैं, जिसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अनुरोध किया है। सबका सपना है संत हृदय मुख्यमंत्री के हाथों यह कार्य हो जाए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमारी दृष्टि में इसके लिए सबसे उपयुक्त हैं। समिति की ओर से मुख्यंत्री को अनुरोध पत्र भेजा गया है। हम क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि लोगों के सहयोग से भी मुख्यमंत्री का कार्यक्रम पाने का प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है कि इस कार्य में जल्द सफलता मिल जाएगी।

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