दिवस विशेष: महात्मा गांधी ने कानपुर में जगाई थी स्वदेशी की अलख
कानपुर। आजादी के आंदोलन में कानपुर की भूमिका काफी अहम रही है। नाराराव पेशवा, तात्याटोपे जैसे वीरों ने इस धरा पर अंग्रेजों से लोहा लिया और उनके दांत खट्टे किए। यह धरा स्वतंत्रता आंदोलन के अगुआकारों को आकर्षित करती रही है। गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक सभी इस क्रांतिधरा पर …
कानपुर। आजादी के आंदोलन में कानपुर की भूमिका काफी अहम रही है। नाराराव पेशवा, तात्याटोपे जैसे वीरों ने इस धरा पर अंग्रेजों से लोहा लिया और उनके दांत खट्टे किए। यह धरा स्वतंत्रता आंदोलन के अगुआकारों को आकर्षित करती रही है। गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक सभी इस क्रांतिधरा पर पधारे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी भी यहां सात बार आए और 20 दिन रुके। नौ अगस्त 1921 को आए बापू ने यहां के मारवाड़ी कालेज में स्वदेशी का नारा दिया और व्यापारियों से विदेशी कपड़ों को न बेचने की अपील की। बापू ने कहा था बिना स्वदेशी स्वराज्य नहीं मिल सकता है।
लखनऊ दौरे पर आए महात्मा गांधी नौ अगस्त 19921 को शहर आए। सबसे पहले यहां उन्हेंने महिलाओं की सभा की और उन्हें स्वदेशी अपनाने और विदेशी वस्त्र त्यागने की अपील की। इसके बाद वे मारवाड़ी कालेज गए। वहां व्यापारियें की सभा को संबोधित किया। उन्होंने व्यापारियों से विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार की आवश्यकता क्यों है इसे विस्तार से समझाया था। नागरिकों द्वारा दिए गए अभिनंदन पत्र के उत्तर में भी उन्होंने व्याख्यान दिया।
कानुपर इतिहास समिति के महासचिव अनूप कुमार शुक्ला कहते हैं कि बापू ने अभिनंदन पत्र को लेकर कहा कि आपके इस पत्र में त्रुटियां हैं। आप लोगों ने मुहम्मद अली का नाम इसमें नहीं लिया है। इससे एकता में फर्क पड़ता है। इस समस्या हिंदू मुस्लिम एकता की परम आवश्यकता है। इसी एकता पर अंग्रेजों की खिलाफत, पंजाब के अन्यायों का निपटारा और अंत में स्वराज्य सिद्धि निर्भर है। गोरक्षा का प्रश्न भी खिलाफत पर ही निर्भर है।
गांधी ने कहा था कि हिंदुओं को बिना किसी बदले के खिलाफत के वास्ते आत्मत्याग करने के लिए सदैव प्रस्तुत रहना चाहिए। गांधी ने क्रोध पर विजय का मंत्र भी दिया और कहा था कि इसके लिए हमें प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारे क्रोध का लोप हो जाए।
