नवाब रुहेला सरदारों ने जगाई थी 1857 क्रांति की अलख, नौमहला मस्जिद में ब्रिटानिया हुकूमत के खिलाफ तैयार होती थी रणनीति
विकास यादव, अमृत विचार। आजादी की जंग में बरेली का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। रोहेला की धरती अंगेजों के लिए मुसीबत बनी रहती थी, बरेली कालेज से लेकर नौमहला मस्जिद समेत कई स्थान आज भी इस बात की गवाही देते है। शहर की नौमहला मस्जिद में तो हिंदू-मुस्लिम दोनों ही समुदाय के आजादी के …
विकास यादव, अमृत विचार। आजादी की जंग में बरेली का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। रोहेला की धरती अंगेजों के लिए मुसीबत बनी रहती थी, बरेली कालेज से लेकर नौमहला मस्जिद समेत कई स्थान आज भी इस बात की गवाही देते है। शहर की नौमहला मस्जिद में तो हिंदू-मुस्लिम दोनों ही समुदाय के आजादी के दीवाने रणनीति तैयार करते थे। 1857 क्रांति की अलख भी यहां से जगी थी।

रुहेला फौज ने अंग्रेजी हुकूमत को अपने शौर्य से धूल चटाई थी। बरेली की नौमहला मस्जिद में इबादत के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी। देश में 1857 की क्रांति को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला स्वतन्त्रता संग्राम आंदोलन माना जाता है। बताते है कि उन दिनों मस्जिद में बैठकर हाफिज रहमत खां के पोते खान बहादूर खां, पंडित शोभराम ओझा, तेंग बहादूर व मुबारक अली शाह आदि देश भक्त रणनीति तैयार करते थे।
यहां तक की रणनीति में अंग्रेजों को मात देने के लिए तोपखाना बनाने की रणनीति भी यहां तैयार की गई थी। थाना प्रेमनगर क्षेत्र के भूड़ मोहल्ले में तोपखाना बना लिया गया था, लेकिन किसी ने इसकी मुखबिरी कर दी। अंग्रेजों ने मस्जिद पर हमला बोल दिया। जिस समय अंग्रेजों ने नौमहला को निशाना बनाया गया। इलाके के कई भवनों और मकानों को नेस्तनाबूत किया गया। नौमहला मस्जिद में भी लूटमार की गई। इस दौरान इस्माईल शाह अजान दे रहे थे। जिनके सीने में अंग्रेजों ने गोली दाग दी। उस समय काफी लोग देश के लिए इस मस्जिद में शहीद हुए थे।

मस्जिद में दी थी निगाह रखने की हिदायत
रुहेला सरदार नवाब खान बहादुर खान ने क्रांतिकारियों के साथ रुहेलखंड में अंग्रेजों की सेना से कड़ा मोर्चा लिया था। इस दौरान नौमहला मोहल्ले में नौमहला मस्जिद क्रांतिकारियों का गढ़ थी। अंग्रेजों को ईद के बाद बगावत की आशंका थी। बरेली के प्रमुख क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की योजना बनाई जाती थी। नौमहला मुहल्ले की नौमहला मस्जिद में क्रांतिकारी एकत्र होते थे। कोतवाल बदरुद्दीन को अंग्रेज अफसरों ने क्रांतिकारियों पर निगाह रखने की हिदायत दी थी।

नौमहला मस्जिद में नमाज के दौरान खास निगाह रखी जाती थी। इसके साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ कोई तकरीर न हो। इसके लिए सख्त हिदायत दी थी। अंग्रेजों के खिलाफ बगावत बढ़ गई थी। 22 मई 1857 को ईद उल अलविदा (रमजान माह का अंतिम जुमा) था। नौमहला मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए छावनी के सैनिकों, बरेली शहर के नागरिकों व बरेली कॉलेज के शिक्षकों व छात्रों की भीड़ एकत्रित थी।

इसी दौरान नमाज के बाद मौलवी महमूद हसन ने नमाज में आई भीड़ के सामने ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तकरीर की। उन्होंने लोगों से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत को जायज बताया था। इसके बाद ही अत्याचारों से निजात की बात कही थी। इस तकरीर का लोगों पर काफी असर पड़ा था। लोग में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत बढ़ गई थी।
हाफिज रहमत खां ने रखी थी नौमहला की बुनियाद
वर्ष 1749 में रूहेला सरदार नवाब हाफिज रहमत खां ने बरेली में अधिकार किया था। उन्होंने नौमहला मुहल्ले की संग -ए -बुनियाद (बसाया) था। इसके बाद अपने पीर सैयद मासूम शाह को सौंप दिया। नौमहला में ही सय्यद अहमद शाह बाबा और उनके बेटे सय्यद मासूम शाह की मजार है। 1857 तक नौमहला घनी आबादी का इलाका था।
मस्जिद में बनी शहिदों की कब्र
वतन को आजाद कराने की रणनीति तैयार करने वाले भारत माता के वीर सपूतों ने हंसते हुए अपनी जान दे दी थी। जिनकी कब्र आज भी मस्जिद में बनी हुई है। मस्जिद में एक ऐसा कुआं है जिसमें सैकड़ों महिलाओं ने अपने पति के शहीद होने के बाद कुएं में कूद कर अपनी जान दे दी थी। आज इस कुएं में पाकड़ का पेड़ उग आया है। आजादी के उस क्षण की गवाह है।
नौमहला मस्जिद का आजादी के समय में बड़ा योगदान रहा है। रोहेलखंड के नवाब हाफिज रहमत खां ने इसको 1749 के दौर में बसाया था। अंग्रेजों से हारने के बाद वह तराई के जंगलों में चल गए थे। उनके पोते खान बहादूर खान ने दोबारा इस नौमहला को बसाया। ब्रिटेश हुकुमत के खिलाफ यहां रणनीति तैयार होती थी। खान बहादूर खां, पंडित शोभराम ओझा, तेंग बहादूर व मुबारक अली शाह आदि देश भक्त रणनीति तैयार करते थे— शाने अली कमाल साबरी नासरी, दरगाह खादिम।
