वन संरक्षण कानून के नए संशोधित नियमों से कॉरपोरेट जगत को फायदा होगा : बृंदा करात

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नई दिल्ली। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को एक पत्र लिखकर वन संरक्षण कानून के नए संशोधित नियमों का विरोध किया है। इसके साथ ही करात ने आरोप लगाया कि नए नियमों से कॉरपोरेट जगत को देश के जंगलों …

नई दिल्ली। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को एक पत्र लिखकर वन संरक्षण कानून के नए संशोधित नियमों का विरोध किया है। इसके साथ ही करात ने आरोप लगाया कि नए नियमों से कॉरपोरेट जगत को देश के जंगलों पर नियंत्रण हासिल करने में मदद मिलेगी। करात ने अपने पत्र में कहा कि नए नियम “आपत्तिजनक, निंदनीय और अस्वीकार्य हैं।” उन्होंने दावा किया कि नियमों में बदलाव से कॉरपोरेट जगत और निजी कंपनियों को देश के जंगलों तक पहुंच स्थापित करने और उन पर नियंत्रण हासिल करने में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा, ‘‘”वास्तव में, अगर नियमों पर संपूर्णता के साथ विचार किया जाए तो यह वन संरक्षण कानून की जगह वन निगमीकरण (कॉरपोरेटाइजेशन) कानून अधिक प्रतीत होता है।’’ करात ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि पहले के नियमों में 100 हेक्टेयर या उससे अधिक के ‘रूपांतरण’ के प्रावधान थे, जबकि नए नियमों में “अधिक” को अब “1,000 हेक्टेयर से अधिक” के रूप में निर्धारित किया गया है। उन्होंने कहा कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने 2019 में वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा सुझाए गए कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई थी।

उन्होंने कहा, “यह आपत्तिजनक, निंदनीय और अस्वीकार्य है कि कैसे संशोधित नियमों ने ग्राम सभाओं और आदिवासी समुदायों तथा वनों में रहने वाले अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को पूरी तरह से खत्म कर दिया है।” करात ने पत्र में लिखा, “भूपेंद्र यादव जी, यह आदिवासी समुदायों को दी गई संवैधानिक गारंटी के पूरी तरह से खिलाफ है, यह पांचवीं और छठी अनुसूचियों, पेसा, संशोधित वन्य जीवन संरक्षण कानून और एफआरए का भी उल्लंघन है…।

यह नियमगिरि खनन मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का भी उल्लंघन है।’’ उन्होंने मांग की कि संशोधित नियमों को विचार के लिए संसद की संबंधित स्थायी समिति के पास भेजा जाए और जनजातीय मामलों के मंत्रालय की राय को भी इसमें शामिल किया जाए, जो वन अधिकार कानून के कार्यान्वयन के लिए नोडल मंत्रालय है।

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