नहीं रहे शिंजो आबे: PM Modi का जापानी दोस्त जो हिंदुस्तान से बेहद इश्क करता था
नई दिल्ली। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की नारा शहर में भाषण देने के दौरान गोली लगने के बाद मौत हो गई है। हमलावर की पहचान 41-वर्षीय यामागामी तेतया के तौर पर हुई है जिसने जांचकर्ताओं को बताया कि वह आबे से ‘असंतुष्ट’ था और ‘उनकी हत्या करना चाहता’ था। आबे पर हमले का …
नई दिल्ली। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की नारा शहर में भाषण देने के दौरान गोली लगने के बाद मौत हो गई है। हमलावर की पहचान 41-वर्षीय यामागामी तेतया के तौर पर हुई है जिसने जांचकर्ताओं को बताया कि वह आबे से ‘असंतुष्ट’ था और ‘उनकी हत्या करना चाहता’ था। आबे पर हमले का वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई राजनेताओं ने शिंजो आबे के निधन पर शोक जताया है।
Sharing a picture from my most recent meeting with my dear friend, Shinzo Abe in Tokyo. Always passionate about strengthening India-Japan ties, he had just taken over as the Chairman of the Japan-India Association. pic.twitter.com/Mw2nR1bIGz
— Narendra Modi (@narendramodi) July 8, 2022
शिंजो आबे न केवल जापान के सबसे ज्यादा लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे, बल्कि वह सबसे ज्यादा बार भारत आने वाले जापानी प्रधानमंत्री थे। अपने करीब 9 साल के शासन में आबे 4 बार भारत आए। साथ ही वह जापान के पहले प्रधानमंत्री थे, जो कि 2014 में गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मित्रता भी इस दौरान काफी चर्चा में रही।
Deeply saddened by the demise of former PM of Japan, Shinzo Abe.
His role in strengthening the strategic relationship between India & Japan was commendable. He leaves behind a lasting legacy in the Indo-Pacific.
My condolences to his family & to the people of Japan.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 8, 2022
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिंजो आबे के दौर में भारत और जापान के रिश्ते नई आयाम पर भी पहुंचे। इस दौरान काशी को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने के समझौते से लेकर बुलेट ट्रेन परियोजना, न्यूक्लियर एनर्जी, इंडो पेसिफिक रणनीति और एक्ट ईस्ट पॉलिसी को लेकर दोनों देशों के बीच अहम समझौते हुए। इसके अलावा चीन के साथ डोकलाम और गलवान विवाद पर भी आबे ने भारत के पक्ष का समर्थन किया और जापान ने चीन को यथास्थिति बनाए रखने की भी नसीहत दी।

साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र ने जापान की यात्रा की थी, तो उस समय दोनों देशों के बीच काशी को क्योटो सिटी के तर्ज पर विकसित करने का समझौता हुआ था। इसके तहत जापान से काशी को स्मार्ट सिटी बनाने में अहम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को विकसित करने के साथ-साथ उसकी ऐतिहासिक धरोहरों, कला, संस्कृति को संरक्षित करने भी मदद करने का समझौता किया गया था।

भारत में पहली बुलेट ट्रेन चलाने की नींव में आबे के कार्यकाल में रखी गई थी। इसके तहत दोनों देशों के बीच 2015 में समझौता हुआ था। समझौते के तहत अहमदाबाद से मुंबई तक बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसके लिए 81 फीसदी राशि जापान सरकार के सहयोग से जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जेआईसीए) देगी। इसके अलावा टेक्निकल सपोर्ट से लेकर बुलेट ट्रेन (शिनकानसेन) की आपूर्ति भी समझौते का हिस्सा थी। भारत में पहली बुलेट ट्रेन 2026 से चलने की संभावना है।

भारत और जापान की दोस्ती का मजबूत उदाहरण, चीन की नापाक हरकतों के समय दिखा। जब 2014 में चीन ने डोकलाम में विवाद शुरू किया तो भारत के साथ जापान मजबूती से खड़ा रहा, इसी तरह 2020 में गलवान घाटी के विवाद के समय भी जापान ने चीन को नसीहत दी और उससे यथास्थिति में किसी तरह की बदलाव नहीं करने की चेतावनी दी। चीन के हरकतों पर लगाम लगाने के लिए भारत के साथ एक्ट ईस्ट पॉलिसी, इंडो पेसिफिक रणनीति बनाने के साथ-साथ क्वॉड की संकल्पना और उसे फिर रिवाइव करने में भी आबे का अहम योगदान रहा है।

आबे जब पहली बार प्रधानमंत्री बनें तो वह अगस्त 2007 में भारत आए थे। उस समय उन्होंने भारत और जापान के संबंधों को लेकर एक अहम भाषण दिया था जिसे दो सागरों का मिलन के रूप में याद किया जाता है। कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-जापान के संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में उस भाषण ने नींव रखी थी। जिसके बाद एनपीटी (Nuclear-Proliferation-Treaty) का सदस्य नहीं होने के बाद भी भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर समझौते से लेकर विदेश और रक्षा मंत्री के साथ (2+2) मीटिंग, रक्षा उपकरणों की तकनीकी ट्रांसफर करने के समझौते से लेकर दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते हुए। जिसने भारत के लिए दुनिया के कई देशों के साथ संबंधों को नए सिरे से मजबूत करने में मदद की। मसलन साल 2016 में भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर समझौते ने अमेरिका और फ्रांस के साथ न्यूक्लियर समझौते करनेका रास्ता खोला।

बता दें, प्रधानमंत्री रहते हुए शिंजो आबे भारत दौरे पर वाराणसी आए थे। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें सैर कराई थी। शिंजो आबे ने पीएम मोदी के साथ गंगा आरती में शामिल हुए थे। उन्होंने दोस्ताना अंदाज में पीएम मोदी के साथ सेल्फी भी ली थी। जापान के प्रधानमंत्री रहते हुए शिंजो आबे दिसंबर 2015 में भारत आए थे। शिंजो आबे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वाराणसी के मशहूर दशाश्वमेध घाट पहुंचे थे। यहां दोनों एक साथ गंगा आरती में शामिल हुए। इस दौरान वहां मौजूद लोगों ने ‘हर हर महादेव’ के नारे भी लगे। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे पीएम नरेंद्र मोदी के साथ दशाश्वमेध घाट पर करीब 45 मिनट तक रहे। इस दौरान वह भारतीय संस्कृति के रंग में रंगे नजर आए। उन्होंने आरती की और नदी में फूल भी समर्पित किए थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे अपना दोस्त मानते हैं। वाराणसी प्रवास के दौरान शिंजो आबे ने पीएम मोदी को बेहद नजदीक से देखा और समझा। इसके बाद शिंजो आबे भारत से रवाना हुए थे तो उनके दोस्त यानी पीएम नरेंद्र मोदी ने भगवद् गीता भी भेंट की थी। जापान के कंजर्वेटिव पार्टी के नेता शिंजो आबे ने साल 2006 में पहली बार जापान के प्रधानमंत्री का पद संभाला था, लेकिन बेहद नाटकीय अंदाज में उन्होंने सिर्फ एक साल बाद ही प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।

देश की अर्थव्यवस्था को संभालने के वादे के साथ साल 2012 में उन्होंने दूसरी बार जापान के प्रधानमंत्री कार्यालय की कमान संभाली और फिर देखते ही देखते उन्होंने जापान की अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया। शिंजो आबे के प्रयास का ही नतीजा था कि साल 2020 में ओलंपिक खेलों का आयोजन जापान में करवाया गया।
नवंबर 2019 में शिंजो आबे जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले पहले नेता बन गए, लेकिन 2020 की गर्मियों में, कोविड महामारी और उनके पूर्व न्याय मंत्री की गिरफ्तारी सहित कई घोटालों की वजह से उनकी लोकप्रियता कम हो गई और उन्होंने ओलंपिक गेम्स की अध्यक्षता किए बगैर ही इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट में कहा, मेरे प्रिय मित्र शिंजो आबे पर हुए हमले से बहुत व्यथित हूं। हमारे विचार और प्रार्थनाएं उनके, उनके परिवार और जापान के लोगों के साथ हैं।

शिंजो आबे, 1957 में स्वतंत्र भारत की यात्रा करने वाले पहले जापानी प्रधान मंत्री नोबुसुके किशी के नाती थे। आबे का भारत से नाता बचपन से जुड़ा था। आबे ने अपनी भारत यात्रा के दौरान उन कहानियों को याद किया था जो उन्होंने बचपन में अपने नाना की गोद में बैठकर भारत के बारे में सुनी थीं। शिंजो आबे का भारत को लेकर खास लगाव था। यह लगाव काशी से लेकर क्योटो तक दिखाई देता था। आबे का भारत की संस्कृति से लेकर द्विपक्षीय संबंधों को लेकर जो निकटता थी वह कई मौकों पर दिखाई थी। बुलेट ट्रेन परियोजना से लेकर असैन्य परमाणु समझौते में आबे की भूमिका भारत से उनके प्रति प्यार को दर्शाती है।

साल 2006 में भारत यात्रा पर संबोधन के दौरान शिंजो आबे ने कहा था कि जापान द डिस्कवरी ऑफ इंडिया से गुजरा है, जिसका अर्थ है कि हमने भारत को एक ऐसे भागीदार के रूप में फिर से खोजा है जो समान मूल्यों और हितों को साझा करता है और एक मित्र के रूप में भी जो स्वतंत्रता और समृद्धि के समुद्र को समृद्ध करने के लिए हमारे साथ काम करेगा, जो सभी के लिए खुला और पारदर्शी हो।
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