भाजपा ने आदिवासी वोट के लिए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया: मेधा पाटकर
कोलकाता। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का मानना कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन (राजग) की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार केवल इसलिए बनाया है क्योंकि यह सुमदाय बहुत बड़ा वोट बैंक है, वरना भाजपा आदिवासी हितैषी नहीं है। पाटकर ने कहा कि …
कोलकाता। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का मानना कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन (राजग) की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार केवल इसलिए बनाया है क्योंकि यह सुमदाय बहुत बड़ा वोट बैंक है, वरना भाजपा आदिवासी हितैषी नहीं है। पाटकर ने कहा कि मुर्मू जो अपने पैतृक गांव में बिजली तक नहीं पहुंचा पाईं, या विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत कर भी क्या कर पाएंगे।
उन्होंने दावा किया कि राष्ट्रपति सत्तारूढ़ दल का रबर स्टैंप बन जाता है। पाटकर ने ‘‘पीटीआई-भाषा’’ को टेलीफोन पर दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘वे (भाजपा) उनके (मुर्मू) जैसा आदिवासी व्यक्ति चाहते हैं और बिरसा मुंडा की जयंती मनाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि मध्य प्रदेश और कई राज्यों में आदिवासी बड़ा बोट बैंक हैं। वे उन्हें वन के अधिकार नहीं दे कर और वनों को कॉरपोरेट के हाथों में देने की योजना बना कर खुद को आदिवासी हितैषी नहीं कह सकते।’
’ पाटकर ने पिछले वर्ष नवंबर में स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भोपाल की यात्रा का जिक्र करते हुए दावा किया कि उस वक्त आदिवासियों के साथ हिंसा की घटनाएं हुई थीं। आदिवासी समुदाय के हक में आवाज बुलंद करने वाली पाटकर ने कहा, ‘‘मोदी जी भोपाल गए थे और एक दिन के कार्यकम में 30करोड़ से अधिक रुपये खर्च किए।
उसी वक्त मध्य प्रदेश में आदिवासियों की पीट-पीट कर हत्या की घटनाएं हुई थीं।’’ नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक सदस्य पाटकर ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा ने जवाहरलाल नेहरू के आदिवासी पंचशील, अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (पेसा) अधिनियम और वन अधिकार अधिनियम जैसे कानूनों को लागू नहीं किया है। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा सही में आदिवासी समुदाय का सम्मान करती है तो उसे कानून लागू करने चाहिए।
पाटकर ने इस बात पर भी शंका जताई कि मुर्मू अगर देश की अगली राष्ट्रपति निर्वाचित हो गईं तो आदिवासियों और दलित समुदाय के अधिकारों के लिए कितना काम कर पाएंगी। सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, ‘‘ केवल राष्ट्रपति ही नहीं बल्कि राज्यपाल के पास भी आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की रक्षा करने के संविधान में अधिकार हैं।
वह अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों के हित के खिलाफ वाले किसी भी कानून को लागू करने से रोक सकते हैं। लेकिन क्या वह सही में अपना सर्श्रेष्ठ दे पाएंगी?’’ उन्होंने कहा कि सभी को यह समझना होगा कि राष्ट्रपति सत्तारूढ़ दल का रबर स्टैंप बन जाता है।
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