भारत में इस साल कब मनाई जाएगी बकरीद, जानें इसका इतिहास और धार्मिक महत्व

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मुस्लिम धर्म ग्रंथ के मुताबिक बकरीद यानि ईद-उल-अजहा का त्योहार हर साल इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जु-अल-हज्जा में मनाया जाता है। बता दें इसे ईद-उल-अजहा के नाम से भी जानते हैं। कहीं-कहीं इसे बकरीद भी कहते हैं। ईद-उल-अजहा या बकरीद का त्योहार कुर्बानी का पैगाम देता है। जिसका मतलब होता है ख़ुदा के बताये …

मुस्लिम धर्म ग्रंथ के मुताबिक बकरीद यानि ईद-उल-अजहा का त्योहार हर साल इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जु-अल-हज्जा में मनाया जाता है। बता दें इसे ईद-उल-अजहा के नाम से भी जानते हैं। कहीं-कहीं इसे बकरीद भी कहते हैं। ईद-उल-अजहा या बकरीद का त्योहार कुर्बानी का पैगाम देता है। जिसका मतलब होता है ख़ुदा के बताये गए रास्ते पर चलना। क्यूंकि बकरीद की तारीख चांद के दिखने पर निर्धारित होती है। ऐसे में भारत में इस साल बकरीद का त्योहार 10 जुलाई को मनाया जाएगा। बता दें बकरीद का त्योहार पवित्र माह रमजान के करीब 70 दिन बाद मनाया जाता है। अब म आपको बकरीद के इतिहास के बार में बताते हैं।

क्या है बकरीद का इतिहास
बकरीद त्योहार मनाने का इतिहास हजरत इब्राहिम से जुड़ी एक घटना से है। मुस्लिम धर्म की मान्यता के मुताबिक, हजरत इब्राहिम खुदा के बंदे थे, उनका खुदा में पूरा भरोसा और आस्था थी। एक बार हजरत इब्राहिम ने एक सपना देखा कि वे अपनी जान से भी ज्यादा प्रिय इकलौते बेटे की कुर्बानी दे रहें हैं। इस सपने को हजरत इब्राहिम ने ख़ुदा का पैगाम माना। उन्होंने इस सपने को अल्लाह की इच्छा मानकर ख़ुदा की राह पर अपने 10 साल के बेटे की कुर्बानी देने का फैसला कर लिया।

वहीं कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देने वाले थे कि उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया। तब से ही ईद-उल-अजहा या बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई। मुस्लिम धर्म के मुताबिक़, बकरीद पर नर बकरा, भेड़ और ऊंट की कुर्बानी दी जा सकती है। कुर्बानी के बाद इस गोश्त को तीन हिस्सों में बाँट दिया जाता है। इसका पहला हिस्सा रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को, अंतिम और तीसरा हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है।

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