कानून की कवायद

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देश में हेट स्पीच के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस मामले में केन्द्र सरकार कानून लाने वाली है। इस कानून के तहत हेट स्पीच की परिभाषा तय की जाएगी। ताकि लोगों को भी यह पता रहे कि जो बात वे बोल या लिख रहे हैं, वह कानून के दायरे में आती है या …

देश में हेट स्पीच के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस मामले में केन्द्र सरकार कानून लाने वाली है। इस कानून के तहत हेट स्पीच की परिभाषा तय की जाएगी। ताकि लोगों को भी यह पता रहे कि जो बात वे बोल या लिख रहे हैं, वह कानून के दायरे में आती है या नहीं। देश में सोशल मीडिया या टेलीविजन प्रसारण के माध्यम से जो भी मुद्दे जनता के बीच आ रहे हैं, इसका दायरा भी तय किया जाएगा।

विधि आयोग ने हेटस्पीच पर अपने परामर्श पत्र में साफ कहा है कि यह जरूरी नहीं कि सिर्फ हिंसा फैलाने वाली स्पीच को हेट स्पीच माना जाए, इंटरनेट पर पहचान छिपाकर झूठ और आक्रामक विचार आसानी से फैलाए जा रहे हैं, ऐसे में भेदभाव बढ़ाने वाली और नस्ली भाषा को भी हेट स्पीच के दायरे में रखा जाना चाहिए। विधि आयोग ने 2017 में भी अपनी एक रिपोर्ट में हेट स्पीच का दायरा बढ़ाए जाने की अनुशंसा की थी।

विधि आयोग के मुताबिक हिंसा के लिए उकसाने को ही नफरत फैलाने वाले बयान के लिये एकमात्र मापदंड नहीं माना जा सकता। ऐसे बयान जो हिंसा नहीं फैलाते हैं उनसे भी समाज के किसी हिस्से या किसी व्यक्ति को मानसिक पीड़ा पहुंचने की संभावना होती है। कनाडा, जर्मनी और यूके ने इस तरह के भाषणों को न केवल विनियमित किया है, बल्कि इन्हें अपराध मानते हुए कुछ विशेष प्रावधान भी किए हैं। दरअसल देश में हेट स्पीच को लेकर अभी अलग से कोई कानून नहीं है।

लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर कुछ लगाम कसते हुए एक तरह से हेट स्पीच को परिभाषित किया गया है। संविधान के आर्टिकल 19 के मुताबिक अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर कुछ प्रतिबंध हैं। देश में कानून बनने से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता खुलेगा। सोशल प्लेटफॉर्म्स के जरिए भ्रामक जानकारी फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनने से कानूनी कार्रवाई का रास्ता खुल जाएगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि हेट स्पीच की इजाजत किसी भी सूरत में नहीं दी जा सकती लेकिन एक डर यह भी है कि हेट स्पीच की आड़ में कहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात तो नहीं किया जाएगा। फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण को बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। बोलने की आजादी के मायने समझने होंगे। क्या अपने धर्म की समालोचना करना और दूसरे के धर्म या विश्वास को सवालों के घेरे में लाना एक जैसा मामला है? क्या फ्री-स्पीच और हेट-स्पीच में कोई अंतर है? आखिर अभिव्यक्ति की आजादी की कोई सीमा-रेखा है?