बहू मांगे इंसाफ…

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हापुड़ में मेरे बड़े भाई श्याम बिहारी शर्मा को बचपन से ही अखबार, कॉमिक्स बुक पढ़ने का शौक था। उनकी देखा-देखी मुझे भी कॉमिक्स पढ़ने की लत लग गई। उस समय 50 पैसे किराये पर कॉमिक्स मिलती थी। मेरा भाई कॉमिक्स ऐसे पढ़ता जैसे रजनीकांत की फिल्म रोबोट में डॉक्टर वसी का बनाया रोबोट चिट्टी …

हापुड़ में मेरे बड़े भाई श्याम बिहारी शर्मा को बचपन से ही अखबार, कॉमिक्स बुक पढ़ने का शौक था। उनकी देखा-देखी मुझे भी कॉमिक्स पढ़ने की लत लग गई। उस समय 50 पैसे किराये पर कॉमिक्स मिलती थी। मेरा भाई कॉमिक्स ऐसे पढ़ता जैसे रजनीकांत की फिल्म रोबोट में डॉक्टर वसी का बनाया रोबोट चिट्टी मोटी से मोटी किताब को एक नजर देखकर ही पढ़ और याद कर लेता है।

भाई का यह पढ़ने का शौक कॉमिक्स से होता हुआ मोटो-मोटो नॉवेल तक जा पहुंचा। हालांकि, इस शौक के चलते मम्मी-पापा से अक्सर डांट सुनने को मिलती थी। पिताजी ने कई बार नॉवलों के ढेर को घर से निकालकर बाहर भी फेंक दिया। लेकिन भाई की नॉवेल पढ़ने की आदत ताउम्र बरकरार रही। उनका एक दोस्त पंकज (भोलू) भी ये नॉवेल पढ़ता था। मैं भोलू से अक्सर पूछा करता- ‘यार, इन मोटो-मोटो उपन्यासों को कैसे पढ़ लेते हो?’

भोलू ने मुझे भी ये नॉवेल पढ़ने के लिए उकसाया और ‘लल्लू’ नाम के मोटा सा उपन्यास मेरे हाथ में थमा दिया। बड़ी हिम्मत करके ‘लल्लू’ को पढ़ना शुरू किया। ‘लल्लू’ पढ़ना शुरू क्या किया कि बस पढ़ता ही गया। हाथ से छूटे ही नहीं। हालांकि, उसे पढ़ने में मुझे 5-6 दिन लगे। जबकि, भाई एक दिन में एक नॉवेल निपटा देता था। इसके बाद तो ऐसा चस्का लगा कि ‘वर्दी वाला गुंडा’ और ‘केशव पंडित’ पढ़े। लेकिन तब तक मेरी पढ़ने की स्पीड भी काफी बढ़ चुकी थी। वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यासों के मुख्य किरदारों के नाम विजय, विकास और केशव पंडित आज भी याद हैं।

एक बार फिर से वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यासों को देखकर पुराने दिन याद आने लगे। लुग्दी साहित्य में तहलका मचाने वाले वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास एक बार पाठकों के हाथ में आ रहे हैं, लेकिन एक नए रूप-रंग में। इस बार उपन्यास उतने मोटे नहीं हैं जितने हमारे समय में हुआ करते थे। हिन्द पॉकेट बुक्स ने वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यासों की लगातार मांग को देखते हुए उनके 6 उपन्यासों को नए डिजाइन के में पेश किया है।

हिन्द पॉकेट बुक्स ने वेद प्रकाश शर्मा के बेहद चर्चित उपन्यास ‘बहू मांगे इंसाफ’, ‘साढ़े तीन घंटे’, ‘कैदी नं। 100’, ‘कारीगर’, ‘हत्या एक सुहागिन की’ और ‘पैंतरा’ के नए संस्करण प्रकाशित किए हैं।

वेद प्रकाश शर्मा के 6 उपन्यासों के गुलदस्ते में एक है ‘बहू मांगे इंसाफ’। दहेज, दानवता और षड़यंत्र पर आधारित यह उपन्यास ‘बहू मांगे इंसाफ’ कविता नामक एक ऐसी युवती की कहानी है जिसका विवाह दहेज लोभी परिवार में हो जाता है। जब दहेज की मांग पूरी नहीं हो पाती है तो सुसराल पक्ष के लोग कविता की हत्या कर देते हैं। उपन्यास में सस्पेंस उस समय पैदा होता है जब कविता की लाश एक-एक करके अपने सभी हत्यारों को मार डालती है। पाठक इसी उलझन में उलझे रहते हैं कि कविता जिंदा है या मुर्दा।

‘बहू मांगे इंसाफ’ के अंश में पढ़ें-

‘मधु सो गई?’

‘हां!’ कमरे में दाखिल होते ही मनजीत ने कहा- ‘मैंने उन्हें नींद की इंजेक्शन दे दिया है और अब वे सुबह के सात बजे से पहले नहीं उठेंगी।’

‘ठीक किया उसके सामने खुलकर बात भी तो नहरीं कर सकते।’

‘पता नहीं ये सब क्या हो रहा है?’ कमरे में पड़ी एक खाली कुरसी पर बैठते हुए मनजीत ने कहा- ‘वह कौन था जो मुझे मारने आया और फिर अलार्म खुद ही क्यों बज उठा। मैं तो पस्त हो चुका हूं डैडी कविता की मौत के बाद से एक के बाद एक ऐसी खतरनाक, रहस्यमय और अजीब-अजीब सी घटनाएं हो रही हैं कि दिमाग काबू में नहीं रहा है।’

उपन्यास ‘बहू मांगे इंसाफ’ पर शशिलाल नायर के निर्देशन में ‘बहू की आवाज’ (Bahu Ki Awaaz) फिल्म बनी थी। 1985 में बनी इस फिल्म में राकेश रोशन, सुप्रिया पाठक, स्वरूप संपत, अरुणा ईरानी, ओम पुरी, नसीरूद्दीन शाहर जैसे कलाकारों ने काम किया था।

दूसरा उपन्यास ‘साढ़े तीन घंटे’ रहस्य, रोमांच और मर्डर की पहेली से भरपूर है। ‘साढ़े तीन घंटे’ में किस्सा है एक औद्योगिक नगर जिन्दल पुरम् में जिन्दल परिवार के मुखिया अनूप जिन्दल खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर लेते हैं। इसके बाद पूरी नगरी में एक के बाद एक हत्याओं का सिलसिला शुरू होता है और हरेक हत्या के पीछे साढ़े तीन घंटे की रहस्य छिपा हुआ होता है।

‘साढ़े तीन घंटे’ के अंश में पढ़ें- सबसे ज्यादा रहस्यमय तो सुधा पटेल का चरित्र ही हो गया है। समझ में नहीं आता कि वह क्या है। जब सेफ में से उसके पत्र मिले थे तो मुझे उससे सहानुभूति हुई थी, कुर्बानी कर देने वाली एक आदर्श प्रेमिका लगी थी वह मुझे। उसके बाद फोन करने फ्लैट पर बुलाया जाना, वहां की हालत, तुम्हारे इस अनुमान ने मुझे उलझा दिया कि अपहरण का ड्रामा खुद उसका रचाया हुआ था और अब, जोगा या इकबाल के कमरे में मिले सुबूतों तथा कालू के बयान ने तो उसके चरित्र को बिल्कुल बदल दिया है।

वेद प्रकाश का एक और उपन्यास है ‘कैदी नं। 100।’ इसमें आप पढ़ेंगे – ”कल रात पागलखाने से नीलम नाम की एक पागल औरत भाग निकली है। भागते वक्त न केवल गार्ड को बेहोश करके उसने एक हंटर और रिवॉल्वर अपने कब्जे में कर लिए बल्कि एक अन्य गार्ड को शूट भी कर दिया। याद रहे वह पागल है, खतरनाक है, सोना नामक महिला की हत्या के जुर्म में उसे अदालत फांसी की सजा सुना चुकी है। पागलपन में भी वह सुरेश नामक अपने पति को कत्ल करने के लिए उतावली रहती थी। रिवॉल्वर की मौजूदगी में तो वह बेहद खतरनाक है।” रेडियो पर खास खबर प्रसारित करने वाली आवाज़ सांस लेने के लिए रुकी।

आगे कहा गया- ”पहचान के लिए हुलिया नोट कर लें। सत्ताईस के आस-पास की उम्र वाली वह एक खूब गोरी स्त्री है। नीली आंखें उसकी पहचान हैं।तन पर पागलखाने की वर्दी पहने है। बाजू पर पागलखाने का बिल्ला लगा है, जिस पर नंबर लिखा है-”100।”

”जी हां। उसे कैदी नंबर 100 कहा जाता है!”

”चौकस रहने की प्रार्थना के साथ ही आप लोगों से अनुरोध है कि अगर वह कहीं चमके तो तुरंत नजदीक के पुलिस स्टेशन को सूचित करें अथवा इस फोन नंबर पर सूचना दें!”

नंबर बताने के बाद कहा गया-”विशेष सूचना समाप्त हुई!” बता दें कि वेद प्रकाश शर्मा का 100वां उपन्यास है- कैदी नं। 100। इस उपन्यास की 2,50,000 प्रतियां छपी थीं।

वेद प्रकाश शर्मा (Ved Prakash Sharma) हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार रहे हैं। इन्होंने सस्ते और लोकप्रिय उपन्यासों की रचना की है। ‘वर्दी वाला गुंडा’ वेद प्रकाश शर्मा का सफलतम थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की लगभग 8 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं। इन्होंने अक्षय कुमार की ‘खिलाडी’ श्रृंखला की फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं। ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’ फिल्म वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास ‘लल्लू’ पर आधारित थी।

वेद प्रकाश शर्मा

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