आ गई याद शाम ढलते ही…
By Amrit Vichar
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आ गई याद शाम ढलते ही बुझ गया दिल चराग़ जलते ही खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े इक ज़रा सी हवा के चलते ही कौन था तू कि फिर न देखा तुझे मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से माह-ए-शब-ताब के निकलते ही तू भी जैसे बदल सा जाता …
आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही
खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े
इक ज़रा सी हवा के चलते ही
कौन था तू कि फिर न देखा तुझे
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही
ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से
माह-ए-शब-ताब के निकलते ही
तू भी जैसे बदल सा जाता है
अक्स-ए-दीवार के बदलते ही
ख़ून सा लग गया है हाथों में
चढ़ गया ज़हर गुल मसलते ही