सुप्रीम कोर्ट की रोक

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उच्चतम न्यायालय ने देश में राजद्रोह के नए मामले दर्ज करने पर फिलहाल रोक लगा दी है। इस कानून पर रोक लगा देने से ऐसे कई लोगों को जमानत मिलने की उम्मीद जगी है जो लंबे समय से जेल में हैं। इनमें कई पत्रकार, ऐक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। शीर्ष अदालत में राजद्रोह से …

उच्चतम न्यायालय ने देश में राजद्रोह के नए मामले दर्ज करने पर फिलहाल रोक लगा दी है। इस कानून पर रोक लगा देने से ऐसे कई लोगों को जमानत मिलने की उम्मीद जगी है जो लंबे समय से जेल में हैं। इनमें कई पत्रकार, ऐक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। शीर्ष अदालत में राजद्रोह से संबंधित कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई की जा रही है।

गत दिवस अदालत ने केंद्र सरकार से राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मसले पर 24 घंटे के अंदर जवाब मांगा था। केंद्र सरकार ने अदालत में स्पष्ट किया है कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
इस बीच, सवाल यह भी खड़े किए जा रहे हैं कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की ‘धारा 124 ए’ क्या है, जिसके जरिए राजद्रोह का मामला दर्ज होता है। हालांकि सॉलिसिटर ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ को बताया कि राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था। वैसे 151 साल पुराने इस कानून को इलाहाबाद और पंजाब उच्च न्यायालय अलग अलग फैसलों में असंवैधानिक भी बता चुके हैं।

देश में राजद्रोह कानून के तहत धारा 124ए का सबसे पहली बार वहाबी आंदोलन के दौरान इस्तेमाल किया गया था। स्वाधीनता आंदोलन के काल में वहाबियों की बढ़ती गतिविधियां ब्रिटिश सरकार के लिए चुनौतियां पेश कर रही थीं। अंग्रेजी हुकूमत ने वहाबियों की आवाज को कुचलने के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया था।

बुधवार को सर्वोच्च अदालत ने केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेती, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए। इस आदेश को ऐतिहासिक और इस कानून के अंत की तरफ बढ़ाया गया पहला कदम माना जा रहा है। याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में कहा कि इस समय पूरे देश में इस कानून के तहत 800 मामले दर्ज हैं और 13 हजार लोग जेल में हैं। देखना होगा कि अब राज्य सरकारें और अदालतें इन सब की जमानत की याचिकाओं को लेकर क्या फैसला लेती हैं।