Hypersonic Missiles: एयरोस्पेस इंजीनियर ने समझाया, हाइपरसोनिक मिसाइलें कैसे करती हैं काम
कोलोराडो। रूस ने यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में बने सैन्य सशस्त्र डिपो पर 18 मार्च 2022 को हमला करने के लिए हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल किया। यह बहुत भयभीत करने वाला लग सकता है, लेकिन रूसी जिस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह बहुत उन्नत नहीं है। हालांकि, रूस, चीन और अमेरिका अगली पीढ़ी …
कोलोराडो। रूस ने यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में बने सैन्य सशस्त्र डिपो पर 18 मार्च 2022 को हमला करने के लिए हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल किया। यह बहुत भयभीत करने वाला लग सकता है, लेकिन रूसी जिस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह बहुत उन्नत नहीं है। हालांकि, रूस, चीन और अमेरिका अगली पीढ़ी की जो हाइपरसोनिक मिसाइलें विकसित कर रहे हैं, वे राष्ट्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकती हैं।
मैं एक एयरोस्पेस इंजीनियर हूं, जो अंतरिक्ष और रक्षा प्रणाली का अध्ययन करता है, जिसमें हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली भी शामिल है। यह नयी प्रणाली हमले करने के अपने तरीके के साथ-साथ गतिशीलता के कारण बड़ी चुनौती पेश करती है। चूंकि, हाइपरसोनिक मिसाइलों की दिशा बीच रास्ते में बदल सकती है, लिहाजा इन पर पूरे समय नजर रखनी होती है।
दूसरी अहम चुनौती इस तथ्य से है कि ये मिसाइलें वायुमंडल के अलग-अलग हिस्सों से गुजरती हैं। नए हाइपरसोनिक हथियार सबसोनिक मिसाइलों से कहीं तेज गति से लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं, लेकिन इनकी रफ्तार अंतर महाद्वीपीय मिसाइलों से बेहद कम होती है। अमेरिका और उसके साझेदारों के पास अलग-अलग क्षेत्रों में इनकी निगरानी के लिए मजबूत प्रणाली मौजूद नहीं है। रूस और चीन के पास भी ऐसी प्रणाली नदारद है।
रूस ने दावा किया है कि उसके कुछ हाइपरसोनिक हथियार परमाणु अस्त्रों को ले जा सकते हैं। यह बयान ही चिंता पैदा करता है, भले ही वह सच हो या नहीं। अगर रूस इस प्रणाली का संचालन दुश्मन पर करता है तो वह देश उसके संभावित लक्ष्य का आकलन पारंपरिक या परमाणु हथियारों के आधार पर करेगा। अमेरिका के संदर्भ में देखें तो अगर वाशिंगटन यह आकलन करे कि हाइपरसोनिक मिसाइल परमाणु हथियार से लैस है तो इस बात की बहुत अधिक आशंका है कि वह जवाबी कार्रवाई में रूस पर परमाणु हथियार से हमला कर दे।
हाइपरसोनिक गति इन हथियारों की अनिश्चितता को बढ़ा देती है, क्योंकि अंतिम समय में किसी भी तरह के राजनयिक समाधान के लिए वक्त बहुत कम बचजाता है। मेरा मानना है कि अमेरिका और उसके साझेदारों को हाइपरसोनिक हथियार बनाने की दिशा में तेजी से काम करना चाहिए, ताकि रूस और चीन जैसे देशों को ऐसे हथियारों के प्रबंधन के लिए राजनयिक रास्ता तलाशने की खातिर वार्ता की मेज पर लाया जा सके।
वाहन को हाइपरसोनिक के तौर पर उल्लेखित करने का अभिप्राय है कि यह ध्वनि से अधिक गति से उड़ान भर सकता है, जो समुद्र तल पर 1,225 किलोमीटर प्रति घंटा और 35 हजार फीट की ऊंचाई पर 1,067 किलोमीटर प्रति घंटा है, जिस पर यात्री विमान उड़ान भरते हैं। यात्री जेट विमान 966 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरते हैं, जबकि हाइपरसोनिक प्रणाली 5,633 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दूरी तय करती है। हाइपरसोनिक प्रणाली का दशकों से इस्तेमाल किया जा रहा है।
वर्ष 1962 में जब अमेरिकी चालक दल धरती का चक्कर लगाकर लौटा था, तब उसका विमान वायुमंडल में हाइपरसोनिक गति से दाखिल हुआ था। परमाणु अस्त्रों से लैस दुनिया की सभी अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें (आईसीबीएम) हाइपरसोनिक हैं, जो 24,140 किलोमीटर प्रति घंटे या 6.4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की अधिकतम गति से लक्ष्य भेद सकती हैं। आईसीबीएम को एक बड़े रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाता है? ऐसी मिसाइलें पूर्व निर्धारित मार्ग पर उड़ान भरती हैं, जिसके तहत वे पहले वायुमंडल से बाहर अंतरिक्ष में जाती हैं और फिर दोबारा वायुमंडल में दाखिल होती हैं।
नयी पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइलें तेज गति से उड़ान भरती हैं, लेकिन आईसीबीएम जितनी तेज नहीं। इन्हें छोटे रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाता है और ये वायुमंडल की ऊपरी परत में ही रहती हैं। तीन तरह की गैर-आईसीबीएम हाइपरसोनिक मिसाइलें होती हैं, जिनमें एयरो बैलिस्टिक, ग्लाइड व्हीकल और क्रूज मिसाइल शामिल हैं।
हाइपरसोनिक एयरो बैलिस्टिक प्रणाली को विमान से गिराया जाता है, जो रॉकेट का इस्तेमाल कर हाइपरसोनिक गति प्राप्त करती है और फिर अपने बैलिस्टिक गुणों का अनुकरण करती है, जिसका मतलब है कि बिना ऊर्जा के रास्ता तय करती है। यूक्रेन के किंझाल में हमले के लिए रूसी बलों ने जिस प्रणाली का इस्तेमाल किया था, वह एयरो बैलिस्टिक मिसाइल थी। इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल वर्ष 1980 से ही हो रहा है।
वहीं, हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल को रॉकेट के जरिये ऊंचे स्थान से छोड़ा जाता है और इसके बाद यह सरकते हुए लक्ष्य की तरफ बढ़ता है और पूरे रास्ते में करतब दिखाता जाता है। हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल के उदाहरणों में चीन का डोंगफेंग-17, रूस का एवानगार्ड और अमेरिकी नौसेना का कंन्वेंशनल प्रॉम्प्ट स्ट्राइक सिस्टम शामिल है। अमेरिकी अधिकारियों ने चिंता जताई है कि चीन की हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल प्रौद्योगिकी अमेरिकी प्रणाली से भी अधिक उन्नत है।
इसी तरह, हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल को रॉकेट से हाइपरसोनिक गति प्रदान की जाती है और इसके बाद इस गति को बनाए रखने के लिए एयर ब्रीदिंग इंजन का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे स्क्रैमजेट कहा जाता है।
हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के प्रक्षेपण के लिए हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल के मुकाबले छोटे रॉकेट की जरूरत पड़ती है, जिसका अर्थ है कि इन्हें कहीं से भी प्रक्षेपित किया जा सकता है और प्रक्षेपण का खर्च भी काफी कम आता है।
हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलें चीन और अमेरिका में विकास के क्रम में हैं। खबर है कि अमेरिका ने मार्च 2020 में स्क्रैमजेट हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया था। देशों द्वारा अगली पीढ़ी के हाइपरसोनिक हथियार बनाने का मुख्य कारण यह है कि इनकी गति, चंचलता और उड़ान के तरीके के कारण इनसे बचना मुश्किल है।
अमेरिका ने हाइपरसोनिक हथियारों से बचाव की तकनीक का चरणबद्ध विकास शुरू किया है, जिसमें अंतरिक्ष में सेंसर की श्रृंखला और अहम साझेदारों से करीबी सहयोग स्थापित करना शामिल है। हालांकि, यह तरीका बहुत खर्चीला हो सकता है और इसे लागू करने में वर्षों लग सकते हैं।
पारंपरिक और गैर-पारंपरिक हथियारों से लैस हाइपरसोनिक मिसाइलें अधिक महत्वपूर्ण लक्ष्यों को निशाना बनाने में कारगर हैं, मसलन विमानवाहक पोत। इस तरह के लक्ष्यों को भेद पाने की सूरत में संघर्ष के नतीजों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, हाइपरसोनिक मिसाइलें मंहगी होती हैं और बड़े पैमाने पर इनके उत्पादन की संभावना नहीं है।
