‘टीम घुगुती जागर’ की आवाज में बसता है पहाड़ का सुख-दुख, सोशल मीडिया से घर-घर में छाए
संजय पाठक, अमृत विचार, हल्द्वानी। पहाड़ के लोगों का सुख-दुख हो या फिर भूली बिसरी लोक संस्कृति, टीम घुघुती जागर की आवाज में जब सामने आती है तो हर कोई एक टक सुनने को मजबूर हो जाता है। टीम घुघुती जागर के तीन युवाओं का लोक संस्कृति के प्रति यह जूनुन गांव-पहाड़ से दूर रह …
संजय पाठक, अमृत विचार, हल्द्वानी। पहाड़ के लोगों का सुख-दुख हो या फिर भूली बिसरी लोक संस्कृति, टीम घुघुती जागर की आवाज में जब सामने आती है तो हर कोई एक टक सुनने को मजबूर हो जाता है। टीम घुघुती जागर के तीन युवाओं का लोक संस्कृति के प्रति यह जूनुन गांव-पहाड़ से दूर रह रहे प्रवासियों की पसंद बना हुआ है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर राजेंद्र ढैला, राजेंद्र प्रसाद और गिरीश शर्मा की यह संगीतमयी जोड़ी खूब चर्चित हो रही है। घुगुती जागर टीम का यूट्यूब चैनल हो या फिर फेसबुक लाइव, हर मंच पर इन युवाओं के मुरीद मिल जाएंगे। इन दिनों तीनों युवा होली के गीतों से सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं।

राजेंद्र ढैला से टीम घुगुती जागर का सफर
मूल रूप से गांव ढैली, ब्लॉक लमगड़ा और वर्तमान में गांव मल्ला ब्यूरा, काठगोदाम निवासी राजेंद्र ढैला ने बताया कि संगीत के इस सफर की शुरुआत बचपन में आकाशवाणी अल्मोड़ा से प्रसारित कविताओं को सुनने से हुई। फिर गांव की होलियों में झोड़ा-चांचरी गाकर पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को नजदीक से समझा। 2012 से मंचों पर काव्य पाठ और 2016 से संगीत की प्रस्तुतियों की शुरुआत हुई। सिडकुल की टाटा मोटर्स में सेवाएं दे रहे राजेंद्र ने बताया कि 2016 में खुद के नाम से ही यूट्यूब चैनल बनाया, जिसमें स्वरचित हास्य व्यंग्य की कविताओं को साझा किया। इस बीच कंपनी में कार्यरत साथी गायक राजेंद्र प्रसाद और ढोलक वादक गिरीश शर्मा से मुलाकात हुई। इसके बाद तीनों दोस्तों ने पहाड़ के संगीत को जन-जन तक पहुंचाने की ठान ली। 2017 में चैनल का नाम घुगुती जागर रखा पर लोगों को सर्च करने में दिक्कत आई तो एक दोस्त की सलाह पर चैनल का नाम घुगुती जागर राजेंद्र ढैला कर दिया। बाद में घुगुती जागर आरडी और वर्तमान में घुगुती जागर टीम है।
इन गीतों से मचा चुके हैं धमाल
‘पहाड़ ल्या रयूं’, ‘देवभूमि को बेटा’, ‘चलिगै सिफारिश’, ‘नि मार ईजा तू मैं कणीं-चेली छूं’, ‘बार बर्ष बिति गई तुम घर नि आया’, ‘फलल फूलल हमर गणतंत्र’, ‘पहाड़ै की ठंडी छांव में’, ‘चीन बै बिमारी ऐगे कोरोना’, ‘रक्षाबंधन त्यार ऐगो’, ‘आई दिवाली’, ‘नई साल आयो- हैप्पी न्यू ईयर’, ‘घीं संगरांत आहा ओकी त्यार’, ‘ऐगै ऋतु रैणा भिटौली का महैंणा’, ‘उड़ कबूतर उड़ उड़’, ‘आंखों का सामणी मेरा तू त बैठी रौ’ समेत 100 से अधिक कुमाऊंनी गीत।
कुमाऊंनी साहित्यकारों के साक्षात्कार वाली पुस्तक की तैयारी
राजेंद्र ढैला ने बताया कि उनका उद्देश्य अपनी बोली भाषा संस्कृति का प्रचार प्रसार करना है ताकि पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत लंबे समय तक जीवित रह सके। 2020 में लॉकडाउन के दौरान उन्होंने कुमाऊंनी के 60 वरिष्ठ साहित्यकारों का कुमाऊंनी भाषा में इंटरव्यू लिया। अब इन साक्षात्कारों को शीघ्र ही पुस्तक का रूप देने की योजना है। राष्ट्रीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन, आकाशवाणी अल्मोड़ा, दूरदर्शन देहरादून समेत सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर टीम घुगुती जागर धमाल मचा चुकी है।
