जनादेश का सबक

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पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। पंजाब से कांग्रेस का सफाया होने के बाद वह एक और राज्य में कम हो गई है। हालांकि, कांग्रेस ने पंजाब और उत्तराखंड में काफी मेहनत की है लेकिन, राजनीति के जानकर पहले …

पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। पंजाब से कांग्रेस का सफाया होने के बाद वह एक और राज्य में कम हो गई है। हालांकि, कांग्रेस ने पंजाब और उत्तराखंड में काफी मेहनत की है लेकिन, राजनीति के जानकर पहले से ही कह रहे थे कि पंजाब में आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी है।

आखिर हुआ भी यही। यहां आम आदमी पार्टी ने अपना दिल्ली वाला इतिहास दोहराया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा फिर से बहुमत के साथ आ रही है। समाजवादी पार्टी की स्थिति तो अच्छी हुई लेकिन बसपा व कांग्रेस को निराशा मिली है। आदित्यनाथ को बाबा बुलडोजर की छवि ने जीत दिलाई।
पंजाब जैसे राज्य में जहां छह माह पहले कांग्रेस में ऐसी उठक पटक शुरू हुई कि खुद ही कांग्रेस नेताओं ने अपनी सरकार का बंटाधार कर दिया। नवजोत सिद्धू और कैप्टन अमरेंद्र सिंह के बीच हुई सत्ता की उठापटक ने अचानक चन्नी की लाटरी तो निकाल दी लेकिन वे जननेता न बन पाए और चुनाव हार गए। कांग्रेस की इसी गुटबाजी में उत्तराखंड भी हाथ से निकल गया।

पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की हार भी एक सबक है। पंजाब के दो बार मुख्यमंत्री रहे अमरेंद्र अपने गढ़ में ही चुनाव हार गए। मणिपुर और गोवा में भी कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन न कर सकी। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और हरीश रावत भी चुनाव हारे हैं। किसान आंदोलन और टिकैत उत्तर प्रदेश में कोई रंग न दिखा पाए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की छाया मानते हुए विश्लेषक भाजपा के खराब प्रदर्शन का अंदाजा लगा रहे थे। किसान आंदोलन की छाया का कोई असर पंजाब में देखने को नहीं मिला। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने तो सीधे चुनाव लड़कर भी कुछ न पाया। राम मंदिर के निर्माण के शुरू होने का फायदा जरूर भाजपा को मिलता दिखाई दिया।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने इस बार सोशल इंजीनियरिंग की जो तमाम कड़ियां जोड़ी थीं उनका कोई खास लाभ उन्हें नही मिल पाया। केंद्रीय मंत्री और भाजपा के चुनाव सह प्रभारी अर्जुन राम मेघवाल ने ट्वीट किया करके कहा कि जातिवाद हार गया, राष्ट्रवाद जीत गया। उत्तर प्रदेश के परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है कि यूपी में जाति आधारित वोट बैंक की राजनीति अब अंतिम सांस ले रही है।