Women’s Day Special : तोड़ी बेड़ियां, महिलाओं ने मेहनत से साधा सफलता पर निशाना
जूही/अमृत विचार। महिलाएं अक्सर उम्र और सीमा में बंधकर अपने लक्ष्य को पाने में असफल हो जाती हैं। लेकिन, बदलते वक्त में महिलाओं का कद और पद दोनों ही बदले हैं। बेड़ियों को तोड़कर मेहनत पर भरोसा कर सफलता हासिल करने का ये जज्बा उन महिलाओं में हैं, जिन्हें समाज अबला, बेचारी और कमज़ोर कहता …
जूही/अमृत विचार। महिलाएं अक्सर उम्र और सीमा में बंधकर अपने लक्ष्य को पाने में असफल हो जाती हैं। लेकिन, बदलते वक्त में महिलाओं का कद और पद दोनों ही बदले हैं। बेड़ियों को तोड़कर मेहनत पर भरोसा कर सफलता हासिल करने का ये जज्बा उन महिलाओं में हैं, जिन्हें समाज अबला, बेचारी और कमज़ोर कहता रहा है। परिवार संभालने के परंपरागत दायित्व को बखूबी निभाते हुए महिलाएं दफ्तरों, सत्ता के गलियारों में अपना वर्चस्व स्थापित कर रही हैं… पेश है कुछ महिलाओं की सफलता की कहानी।
खुद खिलाड़ी नहीं बनी तो, बेटियों को कर रही प्रोत्साहित

उत्तराखंड के हरिद्वार में जन्मी मीनू अरोड़ा का खुद खिलाड़ी बनने का सपना अधूरा रहा गया। मीनू बताती हैं बचपन से वह स्कूलों में खेलों में प्रतिभाग करती रहीं। बीच में परिवार की स्थिति थोड़ी बिगड़ गई। वह चार बहनें होने के चलते नौंवी के बाद उन्होंने पापा के कहने पर गेम्स को टाटा बोल दिया। वर्ष 2002 में शादी हुई इसके बाद खुद आत्मनिर्भर बनाने की ठाना। पहले तो परिवार ने विरोध किया लेकिन पति का साथ उनकी हिम्मत बना रहा। इसी का नतीजा है कि शरणम संस्था के माध्यम से वह जरूरतमंद बेटियों को प्रोत्साहित करने में लग गई। वह बताती हैं कि कोरोना काल के बाद उन्होंने स्टेट लेवल पर बास्केटबॉल चैंपियनशिप कराया। अब वह जल्द बेटियों को स्टेट लेवल का खो-खो खेल कराने जा रही है। मीनू बेटियों को खेल का सामान का लगातार वितरण करती आ रही हैं। इसके अलावा योग प्रतियोगिता, फुटबॉल समेत जरुरतमंद बेटियों की शादी के लिए सामग्री देकर सहयोग करते आई है। खिलाड़ी नहीं बन पाने की टीस उनके मन में आज भी बरकरार है।
महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए कर रही लॉ
हरपाल नगर निवासी कोमल गांधी की जीवन में शादी के बाद कई उतार चढ़ाव आए। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। समाज के तानों से ऊपर उठकर अपना मुकाम हासिल किया है। कोमल ने 2013 में टाइटल विजेता श्रीमती मुरादाबाद सौंदर्य, 2016 में हाउत माउंट फाइनलिस्ट और 2019 में मिसेज सेंट्रल एशिया फर्स्ट रनर अप व मॉम एन किड शो की विजेता का खिताब हासिल किया है। वह बतातीं हैं कि महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कई महिलाओं को आर्थिक तंगी के कारण न्याय नहीं मिल पाता है। ऐसे में उन्होंने जरुरतमंद महिलाओं की निशुल्क सहायता के लिए लॉ करने की ठानी। वर्तमान में कोमल समाज सेवा का कार्य कर रही है।
बांझपन की समस्या दूर करने के लिए कर रही काम
डॉ. नीतू रस्तोगी बांझपन की समस्या दूर करने के लिए कर काम रही हैं। बताती हैं कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बेटियां और महिलाएं सेनेटरी पैड के बारे में नहीं जानती। कई बीमारियों से जूझ रही हैं, जिसे देखते हुए उन्होंने महिलाओं को जागरूक करने का निर्णय लिया। बताती हैं लड़कियों को शिक्षित करने के लिए मासिक धर्म स्वच्छता कार्यशाला करती हैं, क्योंकि वे गंभीर संक्रमण, यौन रोगों, बांझपन के लिए भी जा सकते हैं। कार्यशाला में कैसे सभी परेशानियों से बच सकते हैं ताकि भविष्य में बांझपन की समस्या पैदा न हो। इस उद्देश्य से आवश्यकता होगी बेटियों को साफ सफाई के लिए जागरूक करने का काम कर रही हैं। साथ ही उन्हें सेनेटरी नैपकिन वितरित कर रही हैं।
खुद आत्मनिर्भर बन 2000 बेटियों को रोजगार दिलाया
नजराना गांव की निवासी शोभा चौधरी की घरवालों ने पांचवीं के बाद पढ़ाई रोक दी। जिसके बाद शोभा ने 2010 में अपने जैसी लड़कियों को इकट्ठा कर स्वयं सहायता समूह बनाया और मधुमक्खी पालन करना शुरु कर दिया। शुरुआत में तो काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन, शोभा ने हिम्मत नहीं हारी। मधुमक्खी पालन के साथ लड़कियों को सिलाई सिखाना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने बैग बनाने शुरू किए। जिसका काम चल पड़ा, जिलेभर से शोभा को ऑर्डर मिलने लगे। आमदनी बढ़ने के बाद शोभा से खुद पढ़ाई शुरु की। साथ ही समूह में काम करने वाली बेटियों को भी पढ़ाया। पढ़ाई शुरु करने के बाद उन्हें परिजनों की नाराजगी झेलनी पड़ी। अब सभी लड़कियां ग्रेजुएट हैं। शोभा ने भी 2019 में एमए फाइनल किया है। साथ में वर्मी कंपोस्ट और मशरूम का कार्य भी करवा रही हैं और 100 से ज्यादा बॉक्स है। वहीं 2000 से भी ज्यादा लड़कियों को बैग बनाना मधुमक्खी पालन और मशरूम का कार्य करवा रही है।
इंटीरियर डिजाइनर बनकर पाया मुकाम

रुपाली अग्रवाल ने नागपुर, महाराष्ट्र से इंटीरियर डिजाइनिंग की पढ़ाई की। इसके बाद वह पिछले 20 वर्षों से पति के साथ निजी सलाहकार के रूप में पराग अग्रवाल और सहयोगियों के नाम से काम कर रहे हैं। बताती हैं कि मुरादाबाद समेत आसपास कई निजी परियोजनाओं के लिए वह काम कर चुकी है। जिनमें आवास, कार्यालय, होटल, रेस्तरां, शोरूम आदि शामिल हैं। रुपाली बताती है कि वर्तमान में महिलाओं को शिक्षित होना बेहद जरुरी है इसी उद्देश्य से वह ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को शिक्षित करने का काम कर रही है।
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