Shivratri Special: हसनगंज के जलेश्वर नाथ मंदिर से जुड़ी है यह पौराणिक कथा, शिवरात्रि पर लगता है भक्तों का तांता

उन्नाव। भगवान शंकर के भक्तों के लिए शिवरात्रि विशेष महत्व रखता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवभक्त अनेक प्रकार से पूजा पाठ करते हैं। शिवरात्रि में हर शिव मंदिर में दर्शन और पूजन के लिए शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। इसके साथ ही अगर पूजन के लिए कोई …
उन्नाव। भगवान शंकर के भक्तों के लिए शिवरात्रि विशेष महत्व रखता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवभक्त अनेक प्रकार से पूजा पाठ करते हैं। शिवरात्रि में हर शिव मंदिर में दर्शन और पूजन के लिए शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। इसके साथ ही अगर पूजन के लिए कोई पौराणिक शिव मंदिर हो तो उसकी बात ही अलग है। वैसे तो उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में बहुत से शिव मंदिर हैं पर पौराणिक मंदिरों में से एक मंदिर हसनगंज तहसील के सई नदी के किनारे कस्बा मोहान में स्थित है जिसे जलेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
यह मंदिर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां स्थापित बालू के शिवलिंग की स्थापना भगवान श्री राम के अनुज लक्ष्मण ने शेषा अवतार में की थी। बाबा जलेश्वर नाथ मंदिर के मंदिर में दर्शन के लिए क्षेत्रवासियों के अलावा अन्य जिलों से भी श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के बारे में बताया जाता है की बालू के शिवलिंग की स्थापना त्रेतायुग में भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने उस समय की थी जब वह सीता माता को बिठूर जो कि इस समय बाल्मिक आश्रम परिहरि के नाम से जाना जाता है जहां छोड़ने जा रहे थे।
सीता माता को जब बिठूर छोड़कर अयोध्या जाते समय रात्रि विश्राम मोहान में सई नदी के तट पर किया था तो भोर पहर लक्ष्मण जी का मन विचलित था और माता सीता की याद (मोह) नहीं छूट रहा था तब जाकर लक्ष्मण जी ने बालू के शिवलिंग की स्थापना की थी जिसका उल्लेख बाल्मीकि रचित रामायण में भी हैं। जिसमें एक चौपाई आती है, ”साई उतरी गोमती नहाए, चौथे दिवस अवधपुर आए” मंदिर परिसर में कई और छोटे बड़े मंदिर स्थित हैं जिसमें राम दरबार मंदिर भी है सई नदी के तट पर होने से बड़ा ही सुंदर दृश्य दिखता है जिससे मंदिर की शोभा देखते ही बनती है समय-समय पर नगर पंचायत के द्वारा छोटे बड़े कार्य कराए जाते हैं और रामनवमी मैं विशाल मेला लगता है।
लक्ष्मण के मोहभंग के कारण क्षेत्र का हुआ नामकरण जानकारों की माने तो भगवान श्री राम के आदेश पर लक्ष्मण जी जब सीता माता जी को छोड़ कर वापस आ रहे थे तो यही स्थान पर उनका मोहभंग हुआ था इसलिए इस स्थान का नाम मोहान पड़ा। पुजारी शंकर लाल दास बाबा लगभग 10 वर्षों से इस मंदिर में अपनी सेवा दे रहे हैं। जो बताते हैं की माता सीता से लक्ष्मण जी का मोह नहीं छूट रहा था तब जाकर लक्ष्मण जी ने बालू के शिवलिंग की स्थापना की और शिव जी की आराधना कर के सीता माता का मोह त्यागा था तभी से यह स्थान मोहान के नाम से जाना जाता है।
कस्बा मोहान जो पौराणिक रूप से और मुगल काल से भी महत्वपूर्ण रहा है पर दुर्भाग्य बस इस कस्बे को हाशिये पर छोड़ दिया गया। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब राम के द्वारा त्यागने के पश्चात माता सीता को वनवास के लिए लक्ष्मण वन को जा रहे थे, संध्या होने के कारण इसी स्थान पर रुके थे उस स्थान को आज कोट कहते है यह स्थान सई नदी के किनारे स्तिथ है वहीं लक्ष्मण जी ने शिव आराधना की और श्वेत शिवलिंग की स्थापना की उसे जलेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है ये मंदिर आज भी विराजता है।
क्या बोले नगरवासी
मोहान निवासी राम धीरज यादव ने बताया कि मोहान शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है मोह और हानि यही माता सीता का त्याग हुआ और माता और पुत्र का मोह त्याग हुआ हानि हुई इसलिए इसका नाम मोहान पड़ गया ये क़स्बा चारो तरफ से शिव मंदिरो से घिरा हुआ है जिसमें जलेश्वर नाथ बाबा मंदिर,हरिहर बाबा, मोहनदास बाबा,विहारी दास बाबा ये सभी शिव मंदिर है।
मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष गुड्डन निगम ने बताया कि भगवान राम की आज्ञा मानकर जब लक्ष्मण सीता माता को बिठूर छोड़कर यहां रुके थे तब बालू के शिवलिंग की स्थापना करके पूजन कर माता का मोह त्याग कर निकले थे तभी से मोहान नाम से यह स्थान जाना जाता है।
नगर पंचायत मोहान निवासी सोनू सिंह ने बताया कि लक्ष्मण जी जब सीता जी को छोड़ने के बाद यहां रुके तो सीता माता का मोह नहीं छूट रहा था तब लक्ष्मण जी ने बालू के शिवलिंग की स्थापना की और शिवजी की आराधना की तब जाकर सीता माता से मोह छूटा इसी से इसका नाम मोहान पड़ा और बताया इसका जिक्र ब्रिटिश लाइब्रेरी में भी किया गया है।
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