युद्ध में सैनिकों का जोश बढ़ाने और भगवान शिव की आराधना में होता था इस वाद्ययंत्र का इस्तेमाल, आज नई पीढ़ी है इससे अंजान

युद्ध में सैनिकों का जोश बढ़ाने और भगवान शिव की आराधना में होता था इस वाद्ययंत्र का इस्तेमाल, आज नई पीढ़ी है इससे अंजान

वाद्ययंत्रों का किसी भी संस्कृति से बहुत गहरा नाता रहा है। लोकपर्व हों या सांस्कृतिक कार्यक्रम बगैर पारंपरिक वाद्ययंत्रों के सबकुछ अधूरा अधूरा सा लगता है। उत्तराखंड के अधिकतर लोक वाद्य आज या तो लुप्त होने की कगार पर हैं या लुप्त हो चुके हैं। नागफणी उत्तराखंड का एक ऐसा लोक वाद्य है जो अब …

वाद्ययंत्रों का किसी भी संस्कृति से बहुत गहरा नाता रहा है। लोकपर्व हों या सांस्कृतिक कार्यक्रम बगैर पारंपरिक वाद्ययंत्रों के सबकुछ अधूरा अधूरा सा लगता है। उत्तराखंड के अधिकतर लोक वाद्य आज या तो लुप्त होने की कगार पर हैं या लुप्त हो चुके हैं।

नागफणी उत्तराखंड का एक ऐसा लोक वाद्य है जो अब लुप्त हो चुका है। पहाड़ की नई पीढ़ी ने तो कभी इसका नाम भी नहीं सुना होगा। शिव को समर्पित यह कुमाऊं का एक महत्वपूर्ण लोक वाद्य यंत्र है जिसका प्रयोग पहले धार्मिक समारोह के अतिरिक्त सामाजिक समारोह में भी खूब किया जाता था। कभी पहाड़ की जीवन शैली का हिस्सा रहा यह लोकवाद्य अब विलुप्त हो चुका है। एक ऐसा संगीत जिसकी धुन पर आज की युवा पीढ़ी के पूर्वजों ने न जाने कितने समारोहों का आनंद लिया, आज की पीढ़ी उस वाद्य यंत्र से पूरी तरह से अंजान है।

नागफणी बजाते कलाकार। (फाइल फोटो)

करीब डेढ़ मीटर लंबे इस लोक वाद्य में चार मोड़ होते हैं। कुछ नागफणी में यह चारों मोड़ पतली तार से बंधे होते होते थे। नागफणी का आगे का हिस्सा या मुंह नाग या सांप के मुंह की तरह का बना होता है इसी कारण इसे नागफणी कहा जाता है। तांत्रिक साधना करने वाले लोग भी इस वाद्ययंत्र का प्रयोग करते हैं। मध्यकाल में नागफणी का इस्तेमाल युद्ध के समय अपनी सेना के सैनिकों में जोश भरने के लिए भी किया जाता था। बाद नागफणी का इस्तेमाल मेहमानों के स्वागत में किया जाने लगा। विवाह के दौरान भी इस वाद्ययंत्र का खूब प्रयोग किया जाता था लेकिन अब इसका प्रयोग कहीं होता नहीं दिखता।

नागफणी।

उत्तराखंड के अतिरिक्त नागफणी गुजरात और राजस्थान में भी बजाई जाती है। दोनों ही राज्यों में भी इस वाद्ययंत्र की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। अब इस वाद्ययंत्र को बजाने वालों की संख्या नहीं के बराबर है इसलिए अब कोई इसे बनाता भी नहीं। सिवाय पुराने संग्रहालयों के नागफणी कहीं दिखाई भी नहीं देती है।