दिलचस्प है कुमाऊं की लाइफ लाइन केमू बस सेवा की शुरुआत की कहानी

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कुमाऊं के पहाड़ों के टेड़े मेढ़े रास्तों के बीच सफर को सुहाना बनाने वाली जो कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड (केमू) के बसें आज सेवाएं दे रही हैं, उनके शुरुआत की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। कुमाऊं क्षेत्र की सबसे बड़ी और पुरानी परिवहन संस्था कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड 1939 में गठित हुई। इससे …

कुमाऊं के पहाड़ों के टेड़े मेढ़े रास्तों के बीच सफर को सुहाना बनाने वाली जो कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड (केमू) के बसें आज सेवाएं दे रही हैं, उनके शुरुआत की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। कुमाऊं क्षेत्र की सबसे बड़ी और पुरानी परिवहन संस्था कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड 1939 में गठित हुई। इससे पहले नैनीताल मोटर ट्रांसपोर्ट नामक कंपनी, जिसमें विदेशियों का बाहुल्य था, टूट गई थी। पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जैसे लोगों का इस कंपनी को बनाने में हाथ रहा।

कंपनी के प्रारंभ काल में इसके महाप्रबंधक एंग्लोइंडियन ईजेड फौन्सिका रहे। उनका प्रबंध तंत्र कंपनी को सुचारू रूप से चलाने के साथ मालिकों के बीच सामंजस्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण रहा। देवीदत्त तिवारी इस कंपनी के पहले सचिव रहे। हरवंश पैट्रोल पम्प के मालिक हरवंश सिंह, जो काठगोदाम में रहते थे और लाला बालमुकुन्द कंपनी के निदेशक थे। धीरे-धीरे कंपनी में 250 वाहन शामिल हो गए। इस तरह 250 वाहन मालिक, 250 ड्राइवर, 250 क्लीनर और इतने ही अन्य कर्मचारी सीधे इस व्यवसाय यानी रोजी-रोटी से जुड़ गए। इसके अलावा सैंकड़ों मैकेनिक, मोटर पार्टस विक्रेता हल्द्वानी ही नहीं, रामनगर, टनकपुर आदि स्थानों में इससे जुड़ गए। काठगोदाम में रोडवेज वर्कशाप व परिवहन निगम का कार्यालय था।

हल्द्वानी केमू स्टैंड के पास खड़ी बसें।

कुमाऊं क्षेत्र में यातायात के विकास की बात करें तो यहां मोटर मार्ग प्रारम्भ होने से पहले अपेक्षाकृत समतल भूभागों में तीन प्रमुख बैलगाड़ी मार्ग थे। इन मार्गों को अंग्रेज कोर्ट रोड कहा करते थे। इन्हीं मार्गों से होकर शीतकालीन प्रवास भी हुआ करता था। इनमें पहला मार्ग रियुनी (मजखाली) से रानीखेत, स्यूनी-भतरौंजखान होकर मोहान गर्जिया होते हुए रामनगर तक, दूसरा रियूनी से रानीखेत होते हुए गरमपानी, भवाली, ज्योलीकोट, रानीबाग होते हुए काठगोदाम-हल्द्वानी और तीसरा मार्ग चौखुटिया-मासी-भिकियासैंण, भतरौजखान, मोहान, गर्जिया होते हुए रामनगर तक था। सबसे पहले अंग्रेज शासकों ने हल्द्वानी से रानीबाग तक पुराने बैलगाड़ी मार्ग की लीक पर मोटर मार्ग का निर्माण किया था।

1911 से नैनीताल की ओर मोटर मार्ग बनाया जाने लगा। 1929 में महात्मा गांधी कौसानी आए थे तब गरूड़-बागेश्वर तक कच्चे मार्ग का निर्माण हो चुका था। पर्वतीय मार्गों में सर्वप्रथम आधा टन की ठोस रबर टायर की (पेट्रोल चलित) गाड़ियां प्रारम्भ हुई, जिनकी अधिकतम गति सीमा 8 मील प्रति घंटा थी। 1920 तक एक टन की पेट्रोल चलित लीलेंड गाड़ियां चलना प्रारम्भ हुईं, इनमें 12 व्यक्ति चालक व उपचालक सहित बैठ सकते थे और टायर हवा भरे रबर के होने प्रारम्भ हो गए थे।

1920 से 1938 तक डेढ़ टन की सेवरलेट गाड़ियां चलने लगीं, इन गाड़ियों में 18 व्यक्ति बैठ सकते थे। इन सवारी गाड़ियों में 42 मन भार की अनुमति थी। 1938 में पूर्ण कुंभ के पश्चात् दो टन की मोटर गाड़ियों के संचालन की अनुमति दी गई। बाद में 44 व्यक्तियों को ले जाने की अनुमति दी गई। मोटर कंपनियों की स्थापना से पूर्व यहां बौन ट्रांसपोर्ट, फौन्सिका ट्रांसपोर्ट, इन्द्रजीत सिंह ट्रांसपोर्ट, ब्रिटिश इंडिया ट्रांसपोर्ट कम्पनी, हरवंश ट्रांसपोर्ट, हटन ट्रांसपोर्ट, चालक परमानन्द का वाहन चला करते थे। वर्तमान में रोडवेज बस स्टैंड से कुछ दूरी पर केमू का आफिस स्थापित है।