UP Election 2022 : कमजोर सीटों पर मजबूत जीत के लिए जुटे दल

Amrit Vichar Network
Published By Amrit Vichar
On

विनोद श्रीवास्तव/अमृत विचार। चुनावी बिसात पर टिकट वितरण में मजबूत लड़ाका उतारने के बाद अब दलों के दिग्गज कमजोर सीट पर जीत का गणित फिट करने में जुटे हैं। मंडल की 27 सीटों पर पिछले विस चुनाव के परिणाम के अनुसार इस बार भी मुख्य जंग का खाका तैयार कर प्रमुख दल जीत के दावे …

विनोद श्रीवास्तव/अमृत विचार। चुनावी बिसात पर टिकट वितरण में मजबूत लड़ाका उतारने के बाद अब दलों के दिग्गज कमजोर सीट पर जीत का गणित फिट करने में जुटे हैं। मंडल की 27 सीटों पर पिछले विस चुनाव के परिणाम के अनुसार इस बार भी मुख्य जंग का खाका तैयार कर प्रमुख दल जीत के दावे कर रहे हैं।

  • कांग्रेस के लिए तीन दशक से हर चुनाव रहा घाटे का सौदा
  • इस बार खोने को कुछ नहीं, बस पाने की चाह, भाजपा-सपा में नाक की लड़ाई

पश्चिमी यूपी के राजनीतिक भविष्य का काफी कुछ दारोमदार मंडल के पांच जिलों की 27 विधानसभा सीटों और पांच संसदीय सीटों से तय होता है। कभी भाजपा के लिए दूर की कौड़ी रहे इस क्षेत्र में 2017 विस के चुनावी परिणाम ने कमल को खिलने का पूरा नहीं तो आधे से अधिक अवसर दिया था। 27 में से 14 सीटों पर कमल खिलाकर भाजपा ने सपा-बसपा के इस मजबूत गढ़ में दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस विजय रथ को भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक के सहारे कायम रखने के लिए एड़ी चोट का जोर लगाया, मगर चुनावी दंगल में उसे चारो खाने चित होना पड़ा था। पांच संसदीय सीटों पर भाजपा को करारी शिकस्त मिली। यह दंश आज भी भाजपा के दिग्गजों को 18वीं विधानसभा चुनाव में है। तभी तो हर दिग्गज की जुबां पर अबकी बार पिछली वाली गलती मत दोहराने की रट जनता और कार्यकर्ताओं के सामने रही।

वहीं सपा ने मंडल की 13 सीटों पर अपनी ‘साइकिल’ दौड़ाई थी। लेकिन, रामपुर की स्वार सीट से अब्दुल्ला आजम का निर्वाचन गलत शैक्षणिक प्रमाण पत्र दाखिल करने के चलते हाईकोर्ट ने रद कर दिया था, जिससे उनकी विधायकी चली गई थी। इसके चलते जीत-हार का आंकड़ा 14-12 पर आ गया था। इस बार 27 सीटों को अपनी झोली में डालने के लिए इन दोनों दलों में नाक की लड़ाई चल रही है तो बसपा और कांग्रेस इसे चतुष्कोणीय बनाकर अपने हिस्से में भी सीटें लाने के लिए पुरजोर दम लगाए हैं।

कांग्रेस के लिए इस चुनाव में खोने के लिण्कुछ नहीं है, क्योंकि तीन दशक से अधिक समय से इस मंडल में विस चुनाव उसके लिए घाटे का सौदा ही साबित हुआ है। उसे प्रियंका के करिश्मे पर भरोसा है तो बसपा के पास ‘माया’ जाल है। हाथी की चाल को गति देने के लिए इस बार फिर बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग का ही सहारा लिया है। अब 2022 का सियासी ऊंट किसके पाले में अधिक करवट बदलेगा, यह तो 10 मार्च को ईवीएम का लाक खुलने पर पता चलेगा।

संबंधित समाचार