अयोध्या: चुनावी सहालग में भी प्रिंटिंग प्रेस का कारोबार मंदा, पहले से मंगाया गया माल हुआ डंप
अयोध्या। विधानसभा चुनाव में कोरोना संक्रमण को देखते हुए चुनाव आयोग ने कई तरह की बंदिशें लगा रखी हैं। इसी के चलते अच्छे धंधे की उम्मीद कर रहे प्रिंटिंग प्रेस कारोबारी मायूस हैं। हालांकि, उनको उम्मीद है कि दावेदार तय होने के बाद थोड़ा बहुत काम मिल जाएगा। चुनाव से पहले कारोबारियों ने कच्चा माल …
अयोध्या। विधानसभा चुनाव में कोरोना संक्रमण को देखते हुए चुनाव आयोग ने कई तरह की बंदिशें लगा रखी हैं। इसी के चलते अच्छे धंधे की उम्मीद कर रहे प्रिंटिंग प्रेस कारोबारी मायूस हैं। हालांकि, उनको उम्मीद है कि दावेदार तय होने के बाद थोड़ा बहुत काम मिल जाएगा। चुनाव से पहले कारोबारियों ने कच्चा माल मंगा लिया था, लेकिन चुनाव में वर्चुअल प्रचार को देखते हुए प्रिटिंग प्रेस कारोबारियों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरा गई हैं।
जिला मुख्यालय पर करीब डेढ़ दर्जन कारोबारी प्रिंटिंग प्रेस और फ्लैक्स बनाने का काम करते हैं। प्रिंटिंग प्रेस संचालक रमेश कुमार और सदानंद दूबे ने बताया कि पिछले विधानसभा, लोकसभा और पंचायत चुनाव में बेहतर कारोबार हुआ था। विधानसभा चुनाव को लेकर भी अच्छे कारोबार की उम्मीद थी, लेकिन कोरोना संक्रमण और आयोग की पाबंदियों से पुराने आर्डर भी कैंसिल हो गए। हर चुनाव में करीब चार से पांच लाख रुपये का कारोबार हो जाता था।
चुनाव में फ्लैक्स, पोस्टर, हैंडबिल, स्टीकर, कार्ड आदि की ज्यादा मांग रहती है। वहीं रैलियों में फ्लैक्स बैनर की डिमांड तिगुनी तक बढ़ जाती हैं। प्रिंटिंग प्रेस संचालक जमीर मुस्तफा का कहना है कि फलैक्स के रोल से लेकर इंक तक के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। लगभग 20 प्रतिशत तक दाम बढ़ गए हैं। मुनाफा कम होने के बावजूद भी चुनावों से अच्छी उम्मीद रहती है। लगता है इस बार कुछ नहीं मिलेगा।
चुनाव के चलते अन्य आर्डर भी बंद
आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद कारोबारियों को निजी व सरकारी स्तर पर मिलने वाला काम भी बंद हो गया। प्रकाश अरोड़ा बताते हैं कि प्रिटिंग प्रेस मशीन का हेड रोजाना केमिकल से साफ करना पड़ता है। केमिकल बहुत महंगा हो गया है। फ्लैक्स रोल के दाम भी बढ़ गए हैं। चुनाव के दौरान काम न मिलने से प्रिटिंग प्रेस कारोबार पर मंदी का असर है। सहालग के मौके पर भी कोरोना गाइड लाईन के चलते पहले जैसे आर्डर नहीं मिल रहे हैं।
पहले चुनावों में चहुंओर गूंजता था नारों का शोर
कोरोना काल में हो रहे इस बार के विधानसभा चुनाव में नारों का शोर कम ही सुनाई दे रहा है। एक दौर था जब नारे ही लोगों में जोश भर देते थे। तमाम ऐसे नारे आजादी के बाद से लेकर आज तक हुए चुनाव में गूंजने वाले नारे लोगों की जुबां पर आ ही जाते हैं। पहले के चुनावों में गली-गली टोलियां नारे लगाते हुए निकलती थीं। अब बदलते दौर में चुनावी परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है। हालांकि लोग अब इसे अच्छा मानते हैं। रिकाबगंज निवासी 83 वर्षीय केदार सिंह पुराने दौर में हुए चुनावों में लगने वाले नारों की यादें ताजा करते हुए बताते हैं कि 1971 के चुनाव में गरीबी हटाओ का नारा खूब चला था। जब विधानसभा चुनाव हुए तो यह नारा कांग्रेस समर्थक खूब लगाया करते थे।
वहीं 1977 के चुनाव में इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का नारा खूब लगा था। उस दौर के चुनावों में इंदिराजी का नाम ज्यादा आया करता था। तब प्रत्याशियों के कार्यालय भी अलग-अलग जगह खुल जाया करते थे। सुबह से ही पैदल ही बच्चे हाथों में झंडे और बिल्ले लेकर दौड़ते थे। रिक्शे में लाउडस्पीकर लगाकर प्रचार हुआ करता था। मोहल्ले में सुबह व शाम तो एकत्रित होकर चर्चा करते थे कि चुनाव में क्या माहौल चल रहा है। अब पहले जैसा नहीं रहा है। अब तो मिनट-मिनट का अपडेट मोबाइल पर मिलता रहता है।
यह भी पढ़ें:-लखनऊ: किसके सिर सजेगा ‘मुख्यमंत्री का ताज’, जानिए…जनता क्या बोली?
