लखनऊ: सूबे की सियासत में टूटने लगा बाहुबलियों का तिलिस्म, ये है बड़ी वजह…

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लखनऊ। सूबे की सियासत में दशकों तक जलवा-जलाल बिखेरने वाले बाहुबलियों का तिलिस्म अब टूटने लगा है। हालांकि कुछ बाहुबली अभी भी अपने-अपने क्षेत्रों के मतदाताओं पर असर रखते हैं। ऐसे में भले ही वह सीधे तौर पर किसी सदन में न पहुंच सके लेकिन अपने रिश्तेदारों को चुनाव लड़ाने और जिताने में महारथ रखते …

लखनऊ। सूबे की सियासत में दशकों तक जलवा-जलाल बिखेरने वाले बाहुबलियों का तिलिस्म अब टूटने लगा है। हालांकि कुछ बाहुबली अभी भी अपने-अपने क्षेत्रों के मतदाताओं पर असर रखते हैं। ऐसे में भले ही वह सीधे तौर पर किसी सदन में न पहुंच सके लेकिन अपने रिश्तेदारों को चुनाव लड़ाने और जिताने में महारथ रखते हैं। हालांकि इलाकाई मतदाताओं पर प्रभाव धीरे-धीरे ही सही लेकिन कम होता जा रहा है।

1977 के विधानसभा चुनाव में दिखने लगे थे ‘बाहुबली’

प्रदेश की सियासत में 1977 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद इन बाहुबालियों को हमेशा राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों ने अपना हमसफर बनाया। सत्ता हासिलक करने के बाद पार्टियों ने इनका और इन बाहुबलियों ने राजनैतिक दलों दानों का फायदा उठाया। पूर्वांचल से पश्चिम तक ये बाहुबली सियासत के गलियारे में असरदार रहे।

गोरखपुर के हाता से हिलती थी सत्ता

प्रदेश की राजनीति में बाहुबलियों के युग की शुरूआत हरिशंकर तिवारी के नाम से होती है। इलाके में उनके रसूख का यह आलम था कि 1985 में जेल में रहते हुए उन्होंने गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से विधानसभा चुनाव जीता था। बाबूजी के संबोधन से स्थानीय लोगों में शुमार किए जाने वाले हरिशंकर तिवारी 1997 से लेकर 2007 तक लगातार प्रदेश में किसी न किसी विभाग के मंत्री रहे। गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से वह लगातार 22 सालों तक विधायक रहे।

हालांकि 2007 और 2012 में वह चुनाव हारे। गोरखपुर मंडल के जिलों में उनका रसूख कायम रहा। 2017 के चुनाव में उनके बेटे विनय शंकर तिवारी इसी सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीते। हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर ने 2008 में बसपा के टिकट पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर के खिलाफ चुनाव में ताल ठोकी थी।

हालांकि इस चुनाव में विनय को पराजय का मुंह देखना पड़ा। उनके बड़े बेटे भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी ने 2007 में लोकसभा के उप चुनाव में संतकबीरनगर लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा के टिकट पर वह जीते थे।

हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पूर्वाचाल में हरिशंकर तिवार का हाता है। यही से वह राजनीतिक गतविधियों को संचालित करते हैं। हालांकि चार दशकों बाद उम्र बढ़ने के साथ ही बाबूजी क प्रभाव भी क्ष्रीण होने लगा।

जेल से चुनाव लड़ेंगे मुख्तार अंसारी

मऊ से बसपा के टिकट पर पांच बार विधायक रहे मुख्तार अंसारी एक बार फिर जेल से ही चुनाव लड़ने की फिराक में हैं। इस बार बसपा की बजाय वो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अथवा निर्दलीय मैदान में उतर सकते हैं। उनके भाई अफज़ाल अंसारी बसपा से सांसद हैं। पूर्वाचल के बाहुबलियों में उनका नाम सबसे ऊपर आता है।

हालांकि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही वह जेल में हैं। बाहुबली होने के साथ ही उनका परिवारिक परिवेश राजनैतिक है। उनके चाचा हामिद अंसारी देश के उपराष्टपति भी रह चुके हैं। मऊ और आजमगढ़ मंडल में उनका जबरदस्त प्रभाव है। हालांकि 2017 के बाद से उनका राजनैतिक असर उतार-चढ़ाव से गुजर रहा है।

प्रयागराज में अतीक अहमद की रही धाक

इलाहाबाद पश्चिमी सीट से पांच बार विधायक रह चुके अतीक अहमद की धाक प्रयागराज मंडल के कई जिलों में दशकों तक चली। हालांकि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनके इस दुर्ग को ढहा दिया। अब वर्चस्व को बचाने के लिए अतीक इधर-उधर हाथपैर मार रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि अगर वह खुद चुनाव नहीं लड़ते तो पत्नी शाइस्ता परवीन को चुनाव में उतारेंगे। कुछ दिनों पहले उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमएम से नाता जोड़ा है। इसके अलावा वह अपने बेटे उन्हें प्रयागराज शहर दक्षिणी से उतारने की तैयारी है।

वर्चस्व की जद्दोजहद में जुटे धनंजय सिंह

जौनपुर लोकसभा सीट से बसपा के टिकट पर सांसद रह चुके धनंजय सिंह अपराधिक मामलों में 25 हजार के ईनामी है। पुलिस उनकी तलाश कर रही है। न केवल जौनपुर बल्कि सुल्तानपुर और वाराणसी तक अपने प्रभाव रखने पूर्व सांसद जौनपुर की मल्हनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। चर्चा है कि भाजपा की किसी सहयोगी पार्टी अपना दस (एस ) या फिर निषाद पार्टी के टिकट पर वह यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। उनकी पत्नी श्रीकला रेड्डी जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।

डीपी यादव का पश्चिमी यूर्पी में चलता था सिक्का

शराब के कारोबार से सियासत में आए डीपी यादव ने कांग्रेस के माध्यम से राजनीतिक पारी की शुरूआत की । गाजियाबाद कांग्रेस के जिलाध्यक्ष बनने के बाद पहली ब्लॉक प्रमुख चुने गए। बाद में वह मुलायम के साथ हो लिए और समाजवादी पार्टी के टिकट पर 1993 में बुलंदशहर से विधायक चुने गए। बसपा प्रत्याशी के तैर पर 1996 में संभल से लोकसभा चुनाव जीता।

संभल से मुलायम सिंह के खिलाफ चुनाव लड़कर भी वह सुर्खियों में रहे। उनकी दबंगई को देखते हुए भाजपा ने 2004 में उनको राज्यसभा भेजा। 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी पार्टी बनाई और पत्नी समेत वह विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे।

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