बरेली: गुरु की रुह महसूस करने खानकाह-ए-नियाजिया पहुंची शिवानी

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बरेली, अमृत विचार। कथक सम्राट बिरजू महाराज की शिष्या शिवानी शुक्रवार को दिल्ली से खानकाह-ए-नियाजिया पर अकीदत पेश करने पहुंची। दरअसल बीते दिनों बिरजू महाराज का निधन हो गया था। जिसके बाद शनिवार को बनारस में उनका अस्थि कलश विसर्जित किया जाएगा। लिहाजा गुरू को अंतिम विदाई देने बनारस जा रहीं शिवानी वर्मा ने बिरजू …

बरेली, अमृत विचार। कथक सम्राट बिरजू महाराज की शिष्या शिवानी शुक्रवार को दिल्ली से खानकाह-ए-नियाजिया पर अकीदत पेश करने पहुंची। दरअसल बीते दिनों बिरजू महाराज का निधन हो गया था। जिसके बाद शनिवार को बनारस में उनका अस्थि कलश विसर्जित किया जाएगा। लिहाजा गुरू को अंतिम विदाई देने बनारस जा रहीं शिवानी वर्मा ने बिरजू महाराज के दिल के करीब सूफियों की इस चौखट पर हाजिरी देना मुनासिव समझा।

शिवानी वर्मा ने बताया वह जितना समय अपने गुरू के साथ रहीं, उन्होनें कई बार खानकाह-ए-नियाजिया के बारे में जिक्र किया। उनकी बातों से लगता था कि वह खानकाह से कितनी अकीदत रखते थे। हमें अपने गुरू से रुहानियत मिली और बिरजू महाराज को खानकाहे नियाजिया से रुहानियत हासिल होती थी। ऐसे में जो जगह गुरू के लिए इतनी पावन है तो उनको आखिरी विदाई देने जाते वक्त यहां आना जरूरी हो जाता था।

शायद उनकी आत्मा को शांति मिलेगी हमारे यहां आने से और उनके जाने का गम भी हमारे लिए कम होगा। बिरजू महाराज एक गुरू और एक महान नृतक दोनों ही रूप में अलग किस्म की दिव्यता थी। उन्होनें जो तपस्या की वह वास्तव में एक आदर्श है। खानकाह के प्रबंधक शब्बू मियां नियाजी बताते हैं कि करीब आठ साल पहले विदेश में बिरजू महाराज के सीने में दर्द हुआ था। उसके बाद भी वह उर्स में शिरकत करने आए थे। तबीयत बहुत अच्छी नहीं थी। उनके लिए खानकाह में दुआ भी पढ़ी गई। तबीयत नासाज होने के बावजूद महफिलखाने में उन्होंने भावपूर्ण प्रस्तुति दी। अपनी भाव-भंगिमाओं से ही लोगों को मोहित कर दिया।

खानकाह में गुजरा था बिरजू महाराज का बचपन
शब्बू मियां बताते हैं कि बिरजू महाराज अपने पिता अच्छन महाराज के साथ यहां आते थे। एक तरह से उनका बचपन का काफी समय यहीं खेलते-कूदते हुए गुजरा। यहां वह अपने पिता से शास्त्रीय नृत्य भी सीखते थे। खानकाह के प्रति उनमें हमेशा प्यार बना रहा। ऊंचे मुकाम पर पहुंचने के बाद भी उर्स में यहां आना नहीं भूलते थे। कुछ समय से अधिक उम्र होने के कारण नहीं आ पा रहे थे।

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