मुरादाबाद : कांग्रेस को तीन दशक से जीत की दरकार, दांव पर भाजपा की प्रतिष्ठा
विनोद श्रीवास्तव/अमृत विचार। आजादी के बाद से हर चुनाव का रंग देखते आ रहे मुरादाबाद नगर सीट के मतदाता 18वीं विधानसभा चुनाव में 14 फरवरी को सिरमौर चुनेंगे। यह सीट चार-चार बार कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में रही। अब यह कांग्रेस के लिए अबूझ पहेली बन गई है। तीन दशक से कांग्रेस …
विनोद श्रीवास्तव/अमृत विचार। आजादी के बाद से हर चुनाव का रंग देखते आ रहे मुरादाबाद नगर सीट के मतदाता 18वीं विधानसभा चुनाव में 14 फरवरी को सिरमौर चुनेंगे। यह सीट चार-चार बार कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में रही। अब यह कांग्रेस के लिए अबूझ पहेली बन गई है। तीन दशक से कांग्रेस को जीत की दरकार है तो इस सीट पर फिर जीत दर्ज करना भाजपा की प्रतिष्ठा का सवाल है।
अब तक हुए 17 बार के चुनावी जंग में मुरादाबाद नगर सीट पर चार-चार बार कांग्रेस और भाजपा का परचम लहर चुका है। बात करें कांग्रेस के प्रदर्शन की तो मुरादाबाद नगर सीट पर 1951-52 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के केदारनाथ पहले विधायक बने थे। हालांकि 1957 में यह सीट निर्दलीय हलीमुद्दीन के पास चली गई। उन्होंने 1962 में यह सीट रिपब्लिकन पार्टी के सिंबल पर जीता। 1967 में कांग्रेस के ओंकार सरन ने जीत दर्ज कर पंजा टिकाया। इसके बाद यह सीट 1980 और 1985 के चुनाव में कांग्रेस के खाते में आई।
1985 में यहां से पुष्पा सिंघल जीतीं लेकिन वह पार्टी की आखिरी विधायक साबित हुईं। तब से लेकर आज तक यह सीट कांग्रेस के लिए अनछुई रह गई। तीन दशक से अधिक से इस सीट पर कांग्रेस को जीत की टीस साल रही है। इस बार प्रियंका के सहारे कांग्रेस फिर पंजा टिकाने का दावा ठोंक रहे हैं। हालांकि अभी तो इम्तिहान शुरु हुआ है परिणाम तो 10 मार्च को ईवीएम का लाक खुलने पर सामने आएगा, जिससे सबकी हकीकत की परख होगी।
चार बार भाजपा का रहा दबदबा : मुरादाबाद नगर सीट पर भाजपा का चार बार दबदबा रहा। इस सीट पर तीन बार लगातार संदीप अग्रवाल तो एक बार रितेश गुप्ता कमल निशान से जीते।
दो बार निर्दलीय लड़कर दम दिखा चुके हैं हलीमुद्दीन : 1957 और 1969 में निर्दलीय हलीमुद्दीन ने चुनाव जीत कर पार्टियों को दम दिखाया था। इसके बाद किसी भी चुनाव में किसी निर्दलीय को इस सीट पर जीत नसीब नहीं हुई। हलीमु्दीन ने 1962 का चुनाव रिपब्लिकन पार्टी के बैनर पर जीता था।

