मुरादाबाद : सपा के सामने अपना अभेद्य किला बचाने की चुनौती
आशुतोष मिश्र/ मुरादाबाद, अमृत विचार। मिशन 2022 को लेकर उत्साहित सपा रणनीतिकारों को अपने किले बचाने की चुनौती होगी। क्योंकि गठबंधन की पहली सूची में जिले के किसी क्षेत्र के उम्मीदवार का ऐलान नहीं हुआ है। उम्मीद है कि शनिवार या रविवार को पार्टी इस रहस्य से पर्दा उठा देगी। लेकिन, राजनीतिक परिदृश्य में इस …
आशुतोष मिश्र/ मुरादाबाद, अमृत विचार। मिशन 2022 को लेकर उत्साहित सपा रणनीतिकारों को अपने किले बचाने की चुनौती होगी। क्योंकि गठबंधन की पहली सूची में जिले के किसी क्षेत्र के उम्मीदवार का ऐलान नहीं हुआ है।
उम्मीद है कि शनिवार या रविवार को पार्टी इस रहस्य से पर्दा उठा देगी। लेकिन, राजनीतिक परिदृश्य में इस बात के संकेत दिख रहे हैं कि बदली परिस्थितियों में सपा को गढ़ बचाने में लोहे के चने चबाने पड़ सकते हैं। जिले की तीन विधान सभा क्षेत्रों में पार्टी हैट्रिक लगाती चली आ रही है। वर्ष 2014 के लोक सभा चुनाव में ठाकुरद्वारा के विधायक रहे सर्वेश कुमार सिंह मुरादाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े और विजयी हो गए।
उसके बाद उप चुनाव में सपा ने ठाकुरद्वारा टाउन एरिया के अध्यक्ष रहे नवाब जान खान को मौका दिया और वह चुनाव जीत गए। उस समय प्रदेश में सपा की सरकार थी। साल 2017 का चुनाव भी नवाब जान भाजपा के उम्मीदवार राजपाल सिंह चौहान से जीत गए। भाजपा ने दावा के बाद भी सांसद सर्वेश कुमार सिंह के बेटे को यहां से टिकट नहीं दिया, जबकि उनके बेटे सुशांत सिंह बढ़ापुर से विधायक चुन लिए गए।
यानी सपा यहां लगातार दो बार चुनाव जीत चुकी है। वर्ष 2012 में बिलारी में नए परिसीमन के आधार पर चुनाव में सपा के उम्मीदवार मोहम्मद इरफान जीत गए। बसपा के लाखन सिंह सैनी से उनकी टक्कर हुई थी। कार्यकाल के बीच में सड़क हादसे में इरफान का निधन हो गया। उप चुनाव में सपा ने उनके बेटे मोहम्मद फहीम को टिकट दिया। सहानुभूति की लहर पर फहीम चुनाव जीत गए। उसके बाद वर्ष 2017 का चुनाव भी जीते। अभी पार्टी ने क्षेत्र से उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है। लेकिन, फहीम का टिकट तय माना जा रहा है।
कुंदरकी क्षेत्र से हाजी रिजवान तीसरी बार चुन लिए गए। अभी यहां टिकट को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। बीते चुनाव में सपा को मुरादाबाद शहर और कांठ क्षेत्र में सफलता नहीं मिल पाई। देहात क्षेत्र से हाजी इकराम कुरैशी विधायक हैं। वर्ष 2012 के चुनाव में यहां से सपा की साइकिल दोड़ी थी। तब के विधायक
शमीमुलहक का पिछले साल निधन हो गया। दो टूक यह कि सपा को लगातार जीत दर्ज करने वाली सीटों पर विजय अभियान जारी रखना चुनौती होगी। उधर, अभी इन सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान नहीं हुआ है। जानकार कहते हैं कि राजनीति और क्रिकेट के खेल में कभी भी कुछ भी संभव हो सकता है। वहीं सपा में टिकट के दावेदारों के बीच तरह-तरह की चर्चा से इस बात को बल मिल रहा है कि अबकी बार सपा को अपने अभेद्य किला बचाने की चुनौती होगी।
सत्ता संग्राम
1. बदली परिस्थितियों में सपा को चबाने पड़ सकते हैं लोहे के चने
2.जिले की तीन विधान सभा क्षेत्रों में लगातार जीते उम्मीदवार
