चुनावी रण में अजेय सियासी योद्धा अखिलेश सिंह की खलेगी कमी, सदर सीट से बनाया था रिकॉर्ड

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रायबरेली। विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और चुनावी रण क्षेत्र में सियासी रणबांकुरे एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकने को तैयार हैं। हाईकमान से सीट फाइनल होते ही चुनावी घमासान तेज हो जाएगा। जहां तक वीआईपी जिला रायबरेली की बात की जाए तो यह कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन पहली बार बिना किसी …

रायबरेली। विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और चुनावी रण क्षेत्र में सियासी रणबांकुरे एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकने को तैयार हैं। हाईकमान से सीट फाइनल होते ही चुनावी घमासान तेज हो जाएगा। जहां तक वीआईपी जिला रायबरेली की बात की जाए तो यह कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन पहली बार बिना किसी विधायक के कांग्रेस मैदान में होगी। रायबरेली में पिछले 20 सालों से गांधी परिवार से इतर यदि किसी शख्स का जिले की राजनीति में दबदबा रहा तो वह स्व. अखिलेश सिंह का था।

राबिनहुड जैसी छवि वाले अखिलेश सिंह ने अपने राजनीतिक सफर में रिकार्ड बनाए। पांच बार विधायक रहे तो साथ ही लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, वोटर टर्न आउट में उनका अहम रोल रहता था। पीली कोठी सियासत का केंद्र बिंदु रहती थी। पहली बार रायबरेली में चुनाव बिना अखिलेश सिंह के सियासी दांवपेंच से अलग रहेंगे।

रायबरेली की सभी छह विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का ही दबादबा रहा है। गांधी परिवार का रुतबा और सियासी चमक रायबरेली में चमकती रही। सन 1993 के विधानसभा चुनाव के बाद गांधी परिवार के बराबरी पर सियासी हनक बनाने का काम पूर्व विधायक अखिलेश सिंह ने किया। जब वह 1993 में विधायक बने तो रायबरेली की सियासत में गांधी परिवार के बाद किसी अलग शख्स का दखल बढ़ गया। यही कारण रहा कि अखिलेश सिंह का दखल हर तरह के चुनाव में अधिक बढ़ गया।

रायबरेली सदर सीट पर 1967 से कांग्रेस का कब्जा रहा है.श। इस सीट पर आज तक 10 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। 1967 में पहली बार कांग्रेस के मदन मोहन मिश्रा विधायक बने। 1969 में मदन मोहन मिश्रा दोबारा विधायक बने, वहीं इसके बाद 1974 में सुनीता चौहान, 1977 में मोहन लाल त्रिपाठी, 1980 और 1985 में रमेश चंद्र कांग्रेस से विधायक बने। 1989 में कांग्रेस का विजय रथ जनता दल ने थमा और 1991 तक लगातार दो बार अशोक सिंह विधायक बने। उसके बाद कांग्रेस ने ऐसे चेहरे को उतारा जिसने रायबरेली की सियासत को वन मैन बना दिया। यह चेहरा अखिलेश सिंह का था।

1993 में अखिलेश सिंह  विधायक बने जिसके बाद उनका नाम ही जीत की गारंटी बन गया। 1996 और 2002 में भी विधायक बनकर उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई। इतना ही नहीं 2007 में निर्दलीय विधायक बनकर अखिलेश सिंह ने अपनी ताकत दिखाई। इसके बाद पीस पार्टी के टिकट पर वह लगातार पांचवी बार विधायक बने। वहीं 2017 में उन्होंने अपनी बेटी अदिति सिंह को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाया और विधायक बनाया।

अखिलेश को कोई नहीं दे सका चुनौती

अखिलेश सिंह को कोई पार्टी, कोई नेता चुनौती नहीं दे सका। विपक्षियों के कोई दांव पेंच कभी अखिलेश सिंह के सामने नहीं चल सका। यही वजह रही कि गांधी परिवार भी अखिलेश सिंह की सियासत को रायबरेली में मात नहीं दे सका।

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