नैनीताल के रामगढ़ से रहा है “आधुनिक मीरा” और “गुरुदेव टैगोर” का रिश्ता
हल्द्वानी, अमृत विचार। नैनीताल केवल एक पर्यटक स्थल के रूप में ही नहीं बल्कि देश के जाने माने साहित्यकारों की कर्मस्थली भी रहा है। जिले के छोटे से गांव रामगढ़ से ऐसे ही दो दिग्गज कवियों का नाता रहा है। जिनमें आधुनिक युग की मीरा के नाम से जाने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा और राष्ट्रगान …
हल्द्वानी, अमृत विचार। नैनीताल केवल एक पर्यटक स्थल के रूप में ही नहीं बल्कि देश के जाने माने साहित्यकारों की कर्मस्थली भी रहा है। जिले के छोटे से गांव रामगढ़ से ऐसे ही दो दिग्गज कवियों का नाता रहा है। जिनमें आधुनिक युग की मीरा के नाम से जाने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा और राष्ट्रगान रचयिता प्रबुद्ध कवि गुरूदेव रविंद्रनाथ टैगोर का नाम शुमार है।

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में जन्म लेने वाली हिंदी की प्रख्यात साहित्यकार महादेवी वर्मा का उत्तराखण्ड से गहरा प्रेम रहा है, हिमालय की गोद में रहना,प्राकृतिक सौंदर्य और शांति उन्हें अक्सर अपनी ओर खींचा करते थे और यही वजह भी रही कि उन्होंने रामगढ़ में साहित्य सृजन के लिए अपना आवास बनवा लिया।
बताते हैं 1937 में महादेवी वर्मा बदरी-केदार की यात्रा पर आई थीं, इस दौरान उन्होंने यहां बसने का निर्णय ले लिया था और यहां के प्रधान से अपने लिए घर बनवाने के लिए जगह मांगी और गर्मियों के मौसम यहां में रहने के लिए आने लगीं आज उनके इस घर को मीरा कुटीर के नाम से जाना जाता है।

वे हर वर्ष यहां आतीं और अपनी रचनाओं को लिखने में समय व्यतीत करतीं। रामगढ़ में रह कर ही उन्होंने अपने कविता संग्रह दीपशिखा की कविताएं लिखीं, अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएं के कुछ शब्दचित्र भी इसी जगह लिखे।
उनके साहित्यक मित्र धरमवीर भारती, सुमित्रानंदन पंत, इलाचंद जोशी और तमाम लेखक उनसे मिलने रामगढ़ आया करते थे। इलाचंद्र जोशी ने साल 1960 में इसी भवन घर में रहकर अपना उपन्यास ‘ऋतुचक्र’ लिखा। इसके अलावा भी कई महान रचनाओं को इसी भवन में पूरा किया गया।
सुमित्रानंदन पंत की अनेक प्रकृति संबंधी कविताएं, डॉ धर्मवीर भारती के यात्रा-संस्मरण. डॉ धीरेंद्र वर्मा, गंगा प्रसाद पांडे आदि ने अपनी अनेकों रचनाओं को यहीं पर अंतिम रूप दिया।
बताया जाता है कि रामगढ़ तथा आसपास के क्षेत्र की अनेक निर्धन बालिकाओं को महादेवी वर्मा अपने साथ इलाहाबाद ले गई थीं और वहां से पढ़ा-लिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया।

‘मीरा कुटीर’ के कुछ हिस्से उसी तरह संजोकर रखे गए हैं जैसे कि वह महादेवी वर्मा के समय में थे। उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएं आज भी वैसी ही हैं। आपको बता दें कि आज भी साहित्य प्रेमी साल में एक बार यहां एकत्र होते हैं और उनकी याद में गोष्ठी-संगोष्ठियों का आयोजन होता है। कुछ साहित्य प्रेमी पर्यटकों को भी उनके आवास के कोने में बैठे घंटों लेखन करते देखा गया है।
आपको बता दें कि रामगढ़ में महादेवी वर्मा से पहले विश्वविख्यात कवि और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर आ चुके थे और वे यहां विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे। रामगढ़ की सुरम्य वादियों से प्रभावित होकर राष्ट्रगान रचयिता ने अंग्रेज मित्र डेरियाज से भूमि खरीद ली थी। 1901 में टैगोर ने कुछ दिन यहां बिताए और गीतांजलि रचना के कुछ अंश लिखे।

कोलकाता में सात मई 1861 को जन्मे टैगोर 1901 में पहली बार रामगढ़ पहुंचे। यहां की मनोरम छटा से अभिभूत हुए तो 40 एकड़जमीन खरीद ली। जगह को नाम दिया हिमंती गार्डन। और आज इस जगह को टैगोर टॉप नाम से जाना जाता है। 1903 में पत्नी मृणालिनी के देहावसान के बाद टैगोर 12 वर्षीय बेटी रेनुका के साथ रामगढ़ आए। रेनुका टीबी से ग्रस्त थी। हालांकि बाद में बेटी के निधन से वह दुखी हुए। इस दौरान उन्होंने शिशु नामक कविता रची। गीतांजलि की रचना के लिए 1913 में टैगोर को साहित्य का नोबल दिया गया। गीतांजलि के कुछ अंश को उन्होंने रामगढ़ में रचा। उत्तराखंड से लगाव रखने वाले टैगोर ने सात अगस्त 1941 को संसार से विदा ले ली।
लेकिन अच्छी बात यह है कि गुरूदेव टैगोर के जाने के बाद आज उनकी अंतिम इच्छा सार्थक होती नजर आ रही है। शासन ने रामगढ़ में स्वीकृत केंद्रीय विश्वभारती परिसर के लिए निशुल्क भूमि उपलब्ध कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अब जमीन उपलब्ध होने के बाद विश्वभारती विवि परिसर की जल्द स्थापना होने की उम्मीद है। विश्वभारती विश्वविद्यालय ने परिसर के लिए 150 करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा गया है।

रामगढ़ क्षेत्र के टैगोर टाप में विश्वभारती केंद्रीय विश्वविद्यालय परिसर की स्थापना के लिए भूमि को लेकर कैबिनेट में निर्णय होना बड़ी उपलब्धि है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर वर्षों से जुटे हिमालयन एजुकेशनल रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसायटी (हडर्स) व शांति निकेतन ट्रस्ट फार हिमालया के सदस्यों ने खुशी जताई है। सचिव प्रो. अतुल जोशी ने कहा कि 150 करोड़ रुपये से बनने वाले इस परिसर में 535 विद्यार्थियों के लिए आवासीय भवन भी बनना है। जमीन उद्यान विभाग से विश्वविद्यालय को हस्तांतरित हो जाएगी। प्रस्तावित परिसर में ग्राम्य विकास, कौशल विकास एवं उद्यमशीलता, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, योग एवं अध्यात्म जैसे विषयों पर स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम एवं शोध कार्य आरंभ किया जाएगा। इसे आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में तैयार किया जाएगा।
