पीलीभीत: महिला चुनावी मुद्दा तो बनी… मगर एक ही बार सजा विधायकी का ताज
पीलीभीत, अमृत विचार। महिलाओं के उत्थान के लिए तरह तरह के दावे करने वाली पार्टियों ने पीलीभीत में महिलाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया। यही वजह रही कि पीलीभीत विधानसभा की महिला वोटर सिर्फ वोट बनकर रह गईं और उन्हें विधानसभा तक पहुंचने का रास्ता नहीं मिला। वर्ष 1996 में भाजपा की राजराय सिंह ही …
पीलीभीत, अमृत विचार। महिलाओं के उत्थान के लिए तरह तरह के दावे करने वाली पार्टियों ने पीलीभीत में महिलाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया। यही वजह रही कि पीलीभीत विधानसभा की महिला वोटर सिर्फ वोट बनकर रह गईं और उन्हें विधानसभा तक पहुंचने का रास्ता नहीं मिला। वर्ष 1996 में भाजपा की राजराय सिंह ही एक मात्र ऐसी महिला प्रत्याशी थीं जो विधानसभा का चुनाव जीत सकीं।
पीलीभीत जिले की जनता विधानसभा चुनाव में महिलाओं को आगे बढाने में कंजूसी करती रही है।
1996 को छोड़ दें तो कोई महिला उम्मीदवार विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकी है। 1996 में बतौर भाजपा उम्मीदवार राजराय सिंह का मुकाबला हारून अहमद से हुआ था। मतदाताओं ने राजराय सिंह पर भरोसा जताते हुए 10606 मतों से जीत दिलाई थी। इसके बाद से कोई भी महिला मुख्य मुकाबले में तक नजर नहीं आई। वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीसलपुर विधानसभा सीट से बसपा ने दिव्या गंगवार को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहीं।
जबकि पीलीभीत से चुनाव मैदान में उतरीं राजरानी सातवें नंबर पर रहीं। वह निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं। जबकि आरक्षित सीट पूरनपुर से रालोद ने आयशा बेगम को और एक अन्य पार्टी ने नत्थो देवी को चुनावी समर में उतारा था। आयशा बेगम पांचवें और नत्थो देवी छठे स्थान पर रहीं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी तस्वीर बदली नहीं नजर आ रही। सिर्फ बीसलपुर विधानसभा क्षेत्र में दिव्या गंगवार ही दमदारी से उभरती नजर आ रही हैं।
वह कुछ दिनों पहले ही बसपा छोड़कर सपा में शामिल हुई हैं। उन्हें सपा से टिकट मिलने की अटकलें भी पुरजोर हैं। सांसद के चुनाव में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कुछ ऐसा ही है। मेनका गांधी के अलावा किसी भी महिला को पीलीभीत की जनता ने स्वीकार नहीं किया।
