स्विट्जरलैंड की सुंदरता का अहसास कराएगी चंबल की वादियां
इटावा। कोरोना के प्रतिबंधों के चलते ऑस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड में नये साल का जश्न मनाने से महरूम रहने वाले लोगों को मायूस होने की जरूरत नहीं है। नैसर्गिक सुंदरता से लबरेज चंबल की वादियां पर्यटकों को खूबसूरत नजारे के लिये आमंत्रित कर रही हैं। दशकों तक आतंक का पर्याय बने रहे दस्यु गिरोहों के सफाये …
इटावा। कोरोना के प्रतिबंधों के चलते ऑस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड में नये साल का जश्न मनाने से महरूम रहने वाले लोगों को मायूस होने की जरूरत नहीं है। नैसर्गिक सुंदरता से लबरेज चंबल की वादियां पर्यटकों को खूबसूरत नजारे के लिये आमंत्रित कर रही हैं। दशकों तक आतंक का पर्याय बने रहे दस्यु गिरोहों के सफाये के बाद चंबल घाटी अपनी नैसर्गिक सुंदरता के कारण देश विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रही है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व संरक्षण अधिकारी और पर्यावरणीय संस्था सोायायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के महासचिव डॉ राजीव चौहान ने रविवार को कहा कि नये साल की पहली सुबह का आंनद उठाने वालों को देश के अन्य पर्यटन केंद्रों के बजाय चंबल घाटी की ओर रूख करना चाहिये। यहां की अनुपम छटा और बेहतरीन नजारे किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि चंबल की प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को आज ना केवल सुरक्षित रखने की जरूरत है। बल्कि उसको लोकप्रिय भी बनाना है।
निश्चित तौर पर जो प्राकृतिक संपदा मिली है, उसे ईको पर्यटन के तौर पर विकसित करके जिले को नई दिशा दी जा सकती है। अस्सी के दशक तक चंबल घाटी का नाम आते ही शरीर मे सिहरन दौड़ जाती थी। ज्यादातर लोग मानते है कि खौफ और दहशत का दूसरा नाम चंबल घाटी है। जबकि हकीकत मे ऐसा नहीं है। चंबल में ऊबड़ खाबड़ मिट्टी के पहाड़ों के बीच कलकल बहती चंबल नदी की सुंदरता की कोई दूसरी बानगी शायद ही देश भर मे कहीं और देखने को मिले।
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नदी सैकड़ों दुर्लभ जलचरों का आशियाना है। जिसमें घडियाल, मगरमच्छ, कछुए, डाल्फिन के अलावा करीब ढाई से अधिक प्रजाति के पक्षी चंबल की खूबसूरती को चार चांद लगाते हैं। उत्तराखंड और कश्मीर की सुंदर वादियों की तरह चंबल की नैसर्गिक सुंदरता किसी का मन मोह सकती है। कश्मीर और उत्तराखंड की सुदंरता देखने के लिये देश दुनिया भर से पर्यटक आते हैं, लेकिन चंबल को अभी वह मुकाम हासिल नहीं हुआ है, जिसका वाकई में वो हकदार रहा है। वहीं, पीले फूलों के लिए ख्याति प्राप्त रही यह वादी उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों से कहीं कमतर नहीं है। अंतर सिर्फ इतना है कि वहां पत्थरों के पहाड़ हैं तो यहां मिट्टी के पहाड़ हैं। बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकतीं हैं।
