सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले…

फैज़ अहमद फ़ैज़ एक पाकिस्तानी कवि और बुद्धिजीवी थे। उनकी कविता का पाकिस्तान के सांस्कृतिक इतिहास पर काफी प्रभाव पड़ा। उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में भी लिखा, जो दक्षिण एशिया के अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती है। फैज़ अहमद फ़ैज़ की ये कविता सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन …
फैज़ अहमद फ़ैज़ एक पाकिस्तानी कवि और बुद्धिजीवी थे। उनकी कविता का पाकिस्तान के सांस्कृतिक इतिहास पर काफी प्रभाव पड़ा। उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में भी लिखा, जो दक्षिण एशिया के अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती है। फैज़ अहमद फ़ैज़ की ये कविता सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले… लोगों के दिलों पर राज करती है।
उनके काम का अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच और रूसी सहित विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है, अगा शाहिद अली, मुहम्मद असद, येवगेनी येवतुशेंको और रॉबर्ट बेली जैसे कवियों द्वारा किए गए अनुवादों के साथ। वह मिर्ज़ा ग़ालिब (उर्दू), रबींद्रनाथ टैगोर (बंगाली) काज़ी नज़रूल इस्लाम (बंगाली), अल्लामा इक के साथ भारतीय उप-महाद्वीप के सबसे अधिक पढ़े जाने वाले आधुनिक कवियों में से एक हैं।
फैज़ अहमद फ़ैज़ एक पाकिस्तानी कवि और बुद्धिजीवी थे। उनकी कविता का पाकिस्तान के सांस्कृतिक इतिहास पर काफी प्रभाव पड़ा। उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में भी लिखा, जो दक्षिण एशिया के अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती है। इस महान कवि का काम दक्षिण एशिया के बाहर उतना जाना-पहचाना नहीं है जितना होना चाहिए।
रंग है दिल का मेरे
सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले
सज़ा खता-ए-नज़र से पहले, इताब ज़ुर्मे-सुखन से पहले
जो चल सको तो चलो के राहे-वफा बहुत मुख्तसर हुई है
मुक़ाम है अब कोई न मंजिल, फराज़े-दारो-रसन से पहले
नहीं रही अब जुनूं की ज़ंजीर पर वह पहली इजारदारी
गिरफ्त करते हैं करनेवाले खिरद पे दीवानपन से पहले
करे कोई तेग़ का नज़ारा, अब उनको यह भी नहीं गवारा
ब-ज़िद है क़ातिल कि जाने-बिस्मिल फिगार हो जिस्मो-तन से पहले
गुरूरे-सर्वो-समन से कह दो के फिर वही ताज़दार होंगे
जो खारो-खस वाली-ए-चमन थे, उरूजे-सर्वो-समन से पहले
इधर तक़ाज़े हैं मसहलत के, उधर तक़ाज़ा-ए-दर्द-ए-दिल है
ज़बां सम्हाले कि दिल सम्हाले, असीर ज़िक्रे-वतन से पहले
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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