कुछ मंत्रों के उच्चारण से ही खोला जा सकता है इस मंदिर का सातवां द्वार, जानें रहस्य

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पद्मनाभस्वामी मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया था। इसका जिक्र 9 शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था। 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ दास बताया। इसके बाद शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया। …

पद्मनाभस्वामी मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया था। इसका जिक्र 9 शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था। 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ दास बताया। इसके बाद शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया।

माना जाता है कि इसी वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दी। त्रावणकोर के राजाओं ने 1947 तक राज किया। आजादी के बाद इसे भारत में विलय कर दिया गया, लेकिन पद्मनाभ स्वामी मंदिर को सरकार ने अपने कब्जे में नहीं लिया। इसे त्रावणकोर के शाही परिवार के पास ही रहने दिया गया।

तब से पद्मनाभ स्वामी मंदिर का कामकाज शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है। जब भारत सरकार हैदराबाद के निजाम जैसे देश के शाही परिवारों की दौलत को अपने कब्जे में ले रही थी तब हो सकता है कि त्रावणकोर के तत्कालीन राजा ने अपनी दौलत मंदिर में छुपा दी हो।

मंदिर में रखी अकूत दौलत को लेकर यहां कई तरह की मान्यताएं हैं। बताया जाता है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर का एक और तहखाना खुलना शेष है। इस तहखाने में क्या है, यह अब तक रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि इस मंदिर का सातवां द्वार सिर्फ कुछ मंत्रों के उच्चारण से ही खोला जा सकता है और अगर इसे तोड़ा गया तो कुछ अनहोनी हो सकती है, इसी कारण इस दरवाजे को अब तक खोला नहीं गया है।

इस मंदिर की सबसे खास बात यहां भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति स्थित है जिसमें भगवान श्रीहरि शेषनाग पर शयन मुद्रा में दर्शन दे रहे हैं। साल 2011 में इस मंदिर से बड़ी मात्रा में सोने के गहने, सोने-चांदी के सिक्के, जवाहरात जड़े मुकुट, मूर्तियां वगैरह मिली थीं। यहां तक कि कुछ नेकलेस तो नौ फुट लंबे और दस किलो वजनी हैं। इस पूरे खजाने की कीमत तकरीबन 5 लाख करोड़ रुपए के आसपास आंकी गई।

यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ‘पद्मनाभ’ कहा जाता है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा मिली थी जिसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर का निर्माण राजा मार्तण्ड ने करवाया था।

मंदिर में एक स्वर्णस्तंभ भी बना हुआ है जो मंदिर की खूबसूरती में इजाफा करता है। मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है जो इसकी भव्यता में चार चाँद लगा देती है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है।

इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए रोजाना हजारों भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के ‘अनंत’ नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है।

मंदिर में पद्मनाभ स्वामी की मूर्ति की स्थापना कब और किसने की, इसकी कहीं कोई ठोस जानकारी नहीं है। त्रावनकोर के इतिहासकार डॉ एल. ए. रवि वर्मा के अनुसार ये रहस्यमय मंदिर 5000 साल पहले कलियुग के पहले दिन स्थापित हुआ था।

-निखिलेश मिश्रा

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