मिशन 2022: प्रसपा के भावी प्रत्याशी वजूद को लेकर परेशान, जानें वजह?

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लखनऊ। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के भावी प्रत्याशी अपने वजूद को लेकर परेशान है। सपा से गठबंधन के बाद कई प्रत्याशियों को विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने का कष्ट सता रहा है। बीते करीब पांच वर्षों से पार्टी की सेवा करने के बावजूद अब टिकट न मिलने की आशंका से कार्यकर्ताओं को मनोबल टूट …

लखनऊ। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के भावी प्रत्याशी अपने वजूद को लेकर परेशान है। सपा से गठबंधन के बाद कई प्रत्याशियों को विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने का कष्ट सता रहा है। बीते करीब पांच वर्षों से पार्टी की सेवा करने के बावजूद अब टिकट न मिलने की आशंका से कार्यकर्ताओं को मनोबल टूट रहा है।

समाजवादी पार्टी (सपा) और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के बीच गठबंधन को लेकर हरी झंडी सपा प्रमुख की ओर से मिल चुकी है लेकिन अभी तक सीटों को लेकर कोई भी बात तय नहीं हुई है। दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में इस बात की खुशी जरूर है कि इन दो दलों का गठबंधन हो ताकि प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्षियों के खिलाफ जमकर मोर्चाबंदी हो सकें।

बीते वर्ष 2012 चुनावी रण में चाचा शिवपाल सिंह यादव और भतीजे अखिलेश यादव की जोड़ी और सधे हुए बयानों से प्रदेश का ताज अखिलेश यादव को मिला, लेकिन पांच वर्ष पूरे होते-होते चाचा-भतीजे के बीच किन्हीं मुद्दों को लेकर खटास हो गई। एक बार फिर चाचा-भतीजे के साथ आने से कार्यकर्ताओं में उत्साह हैं, उन्हें लगता है कि प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव जैसे वरिष्ठ नेता और अनुभवी नेता सपा के साथ आ जाने से इस बार भी सरकार बन सकती है।

इसमें भी कोई दो राय नहीं कि अखिलेश यादव ने भी विजय रथ यात्रा निकालकर विपक्षियों को अपनी ताकत अहसास करा दिया है। इन सबके बीच एक ओर दो दलाें के गठबंधन होने से अब दोनों दलों के कार्यकर्ताओं या यूं ही कहें ले कि भावी प्रत्याशी को अपने लिए टिकट की समस्या खड़ी होती दिख रही हैं। सपा सूत्रों की माने तो प्रसपा से गठबंधन में 10 से ज्यादा सीट दिया जाना मुश्किल हैं जबकि प्रसपा के कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि 100 सीटों की मांग की जा रही है लेकिन 50 सीटों तक भी बात बनीं तो पार्टी के जिताऊ कार्यकर्ताओं को टिकट मिल सकता है।

दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के लिए चुनौती

दोनों दलों सपा और प्रसपा के कार्यकर्ताओं के सामने आगामी चुनावी रण में बड़ी चुनौती है। इन दलों को लेकर कार्यकर्ताओं के अपने-अपने तर्क है। वैसे दोनों की कार्यकर्ताओं का कहना है कि वर्ष 2017 में जब परिवारिक मतभेद हुए तो कार्यकर्ता दो धड़ों में बटे। कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस दौरा में अपनी निष्ठा दिखाते हुए अपना मुखिया तय कर लिया है। अब मुखिया की बारी है कि वे कितना कार्यकर्ताओं को सम्मान की चिंता करते हैं।

शिवपाल ने जताईं चिंता

फिलहाल कार्यकर्ताओं को आगामी चुनावी रण में उतारा जाए और वे अच्छे से चुनाव लड़े। इसके लिए खुले मंच से प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव कह चुके हैं और इसके लिए उन्होंने चिंता जताई कि जो मेरे संघर्ष के दिनों में मेरे साथी रहे हैं, उन्हें नहीं छोड़ूंगा और उनके लिए गठबंधन में सीटें जरूर लूंगा।

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