हल्द्वानी: धर्म की सीमा के बाहर राजनीति करना उन्माद फैलाना : शंकराचार्य

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हल्द्वानी, अमृत विचार। गोवर्द्धन पीठ पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद स्वामी ने बिठौरिया में उत्तरांचल उत्थान परिषद के तत्वावधान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान उन्होंने कई सवालों के उत्तर दिए। उन्होंने देश में चार शंकराचार्य के संबंध में शासन स्तर पर आदेश जारी करने की बात कही। धर्म में व्यापार की संलिप्तता को …

हल्द्वानी, अमृत विचार। गोवर्द्धन पीठ पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद स्वामी ने बिठौरिया में उत्तरांचल उत्थान परिषद के तत्वावधान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान उन्होंने कई सवालों के उत्तर दिए। उन्होंने देश में चार शंकराचार्य के संबंध में शासन स्तर पर आदेश जारी करने की बात कही।

धर्म में व्यापार की संलिप्तता को लेकर उन्होंने कहा कि व्यापार तंत्र पूरे विश्व में बहुत सक्रिय है। जैसे रेल की पटरी न हो और रेल को चला दिया जाए तो दुर्घटना हो सकती है उसी तरह से धार्मिक और आध्यात्म क्षेत्र में भी व्यापार का प्रवेश हो गया है। लेकिन व्यापार तंत्र अधिक समय तक नहीं चलता है। अंत में हमेशा सत्य की ही विजय होती है। व्यापार करने वाले बहुत से व्यक्ति आए लेकिन टिक नहीं पाए। सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, संपन्न, सेवा परायण, स्वस्थ व्यक्ति और समाज की रचना ही राजनीति की परिभाषा है।

कहा कि अंग्रेज भी हिंदुओं के हिमायती नहीं थे लेकिन उन्होंने भी जगद्गुरु शब्द के प्रयोग पर नियम तय किए थे और कहा था कि इस शब्द का प्रयोग केवल चार पीठ के ही शंकराचार्य कर सकते हैं और कोई नहीं कर सकता है। आज के समय में शासन तंत्र ही दिशाहीनता के कारण जगद्गुरुओं की भरमार है। शासनतंत्र नहीं चाहता है कि धार्मिक या आध्यात्मिक क्षेत्र उसके समकक्ष या उससे ऊपर हो। अगर केंद्रीय शासन यह घोषित कर दे कि चार पीठ ही असली पीठ हैं और उसके शंकराचार्य ही असली शंकराचार्य हैं तो अन्य शंकराचार्यों पर कार्रवाई से समस्या का समाधान हो जाएगा। कहा कि जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री नकली नहीं हो सकते तो नकली शंकराचार्य क्यों घूम रहे हैं। उनको दंड क्यों नहीं दिया जाता।

देवस्थानम बोर्ड के संदर्भ में उन्होंने कहा कि सेकुलर शासन तंत्र का धार्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होता है। धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र पर सनातन परंपरा का निर्वहन करना चाहिए। राजनीति में धर्म के इस्तेमाल पर उन्होंने कहा कि राजनीति का अर्थ ही धर्म होता है। राजधर्म राजनीति एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। उन्माद फैलाना उचित नहीं है। धर्म की सीमा के बाहर राजनीति करना उन्माद फैलाना है। आज के समय में सनातन दृष्टि से विकास को परिभाषित करना चाहिए। शंकराचार्य ने कहा कि गोवंश को बचाने के लिए उनका कृषि कार्य में ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए। गीता के 18वें अध्याय में इसके बारे में बताया गया है।

राममंदिर के मसले पर उन्होंने कहा कि राममंदिर फैसले में न्यायालय की तरफ से दूसरे समुदाय को उनके धार्मिक स्थल के लिए पांच एकड़ जमीन दिया जाना गलत है। और ऐसा हमें आने वाले समय में मथुरा और काशी के फैसले में भी देखने को मिल सकता है। कहा कि नरसिम्हा राव के शासनकाल में अगर मैंने एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिया होता तो राममंदिर के समीप ही मस्जिद बन गई होती।

लोगों ने पूछे शंकराचार्य ये सवाल
डॉ. मनमोहन चंद्र पांडेय-15 करोड़ आदिवासियों को हिंदुओं से क्यों अलग क्या जा रहा है।
शंकराचार्य- आदिवासी स्वयं में ही भ्रामक शब्द है। ऋषि मुनि ही आदिवासी ही थे। हमारा ध्यान मूलों पर है, हर समस्या का समाधान होगा।

मनमोहन जोशी-स्वतंत्रता के बाद अभी तक किसी भी भारतीय  को विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं मिला।
शंकराचार्य- सत्य अपना रास्ता खुद ही निकाल लेता है। कोई किसी को दबा नहीं सकता है। हमारा विज्ञान श्रेष्ठ है और हमें उसे समझने की जरूरत है। विज्ञान से जुड़ी एक टोली का गठन होना चाहिए।

आदित्य तिवारी-मेरी ईश्वर के प्रति आस्था बहुत है लेकिन मुझे लगता है कि मुझ पर भगवान की कृपा क्यों नहीं होती।
शंकराचार्य-तुम्हारी आंखों से यह कहते हुए आंसू आ रहे हैं। यही भगवान की कृपा है।

मैत्री रौतेला-अखंड भारत का स्वरूप कब साकार होगा।
शंकराचार्य-परिस्थिति बदलने की क्षमता जिसमें है, वही इतिहास बनाएगा।