बेव सीरीज देखकर बदल रहा बच्चों का व्यवहार, इस तरह करें उपचार

बेव सीरीज देखकर बदल रहा बच्चों का व्यवहार, इस तरह करें उपचार

बरेली, अमृत विचार। डाक्टर साहब पता नहीं हमारा बच्चा कहां से भद्दी-भद्दी गालियां देना सीख गया है। घर का कोई भी व्यक्ति बातचीत करते समय अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं करता है। बच्चों के बर्ताव से समाज से कभी-कभार शर्मिंदगी होती है। इसके अलावा झूठ बोलना, चोरी करना, गुस्सा तो ज्यादातर बच्चों बर्ताव के बर्ताव …

बरेली, अमृत विचार। डाक्टर साहब पता नहीं हमारा बच्चा कहां से भद्दी-भद्दी गालियां देना सीख गया है। घर का कोई भी व्यक्ति बातचीत करते समय अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं करता है। बच्चों के बर्ताव से समाज से कभी-कभार शर्मिंदगी होती है। इसके अलावा झूठ बोलना, चोरी करना, गुस्सा तो ज्यादातर बच्चों बर्ताव के बर्ताव में शामिल हो गया है। इस तरह की गुहार लेकर कई परिजन बच्चों की काउंसलिंग कराने के लिए जिला अस्पताल के मनकक्ष में पहुंच रहे हैं।

इन दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म पर वेब सीरीज हर वर्ग के लोगों को खूब भा रही हैं। कई फिल्मों में गालियों का इस्तेमाल किया जाता है। कोविड के चलते ऑनलाइन पढ़ाई जारी होने की वजह से बच्चे दिन भर मोबाइल, लैपटॉप फोन से चिपके रहते हैं। अभी भी कई परिजन अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। ऐसे में बच्चों को मोबाइल एडिक्शन हो गया है। वह पढ़ाई के बाद भी दिनभर मोबाइल, लैपटॉप में फिल्म देखते रहते हैं या फिर सोशल मीडिया पर नजरें गये रहते हैं।

वहीं, कोरोना महामारी में बच्चे घरों में ही कैद रहे। उनका दोस्तों से मिलना-जुलना बिल्कुल बंद हो गया। ऐसे में भी उनका बर्ताव बहुत बदला है। ज्यादातर बच्चे चिड़चिड़े होने से उनका व्यवहार भी हिंसक हो गया है। परिजन बच्चों को समझाने की बजाए मारपीट करने लगते हैं, जो बच्चों को और उग्र बना दे रहा है। पहले इस तरह के मामले मनोचिकित्सकों के पास महीनों में इक्का-दुक्का बच्चे पहुंच जाते थे मगर अब सप्ताह में चार से पांच केस आ रहे हैं।

मनपसंद चीज से दूर करने का भय दिखाएं
मनोचिकित्सकों का कहना है कि परिजनों को बच्चे के दुर्व्यवहार करने पर मारपीट नहीं करनी चाहिए। बल्कि, गालियां या दुर्व्यवहार करने का कारण खोजकर उससे दूर करना चाहिए। साथ ही उसे उसी चीज से दूर करने का भय दिखाना चाहिए, जो उसे सबसे ज्यादा पसंद हो। फिर चाहें टीवी का कार्यक्रम हो, खास खाने की डिश हो या फिर कुछ और।

ऐसे बच्चों का डॉक्टर तीन चरणों में पड़ताल करने के बाद इलाज करते हैं। पहला एटेंशन डिफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिस्ऑर्डर की जांच की जाती है। ये होने पर बच्चा एक जगह पर नहीं बैठता है और शैतानी करता रहता है। जबकि, दूसरा कंडक्ट डिस्ऑर्डर होता है। जिसमें बच्चा झूठ बोलता और चोरी करता है। दूसरे बच्चों से लड़ता है। इन दोनों डिस्ऑर्डर में दवाओं की जरुरत पड़ती है। ये नहीं होने पर काउंसलिंग की जाती है। काउंसलिंग भी ए, बी, सी और डी चरण में होती है।

कोरोना के चलते बच्चों के स्कूल बंद रहे। अब वो दिनभर मोबाइल देखते रहते हैं। वेब सीरीज, सोशल मीडिया पर गलत शब्दों का इस्तेमाल होने से बच्चे गालियां सीख रहे हैं। सप्ताह में चार से पांच मामले इस तरह के मेरे पास आ रहे हैं। ऐसे बच्चों के साथ परिजन मारपीट न करें। प्यार से समझाने की कोशिश करें। -डा. आशीष कुमार, मनकक्ष प्रभारी, जिला अस्पताल

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