भारतीय भौतिक-शास्त्री थे नोबेल पुरस्कार विजेता चंद्रशेखर वेंकट रमन, जानें इतिहास

भारतीय भौतिक-शास्त्री थे नोबेल पुरस्कार विजेता चंद्रशेखर वेंकट रमन, जानें इतिहास

चन्द्रशेखर वेंकटरमन भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष 1930 में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। रामन संगीत, संस्कृत और विज्ञान के वातावरण में बड़े हुए। वह हर कक्षा में प्रथम आते थे। …

चन्द्रशेखर वेंकटरमन भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष 1930 में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है।

रामन संगीत, संस्कृत और विज्ञान के वातावरण में बड़े हुए। वह हर कक्षा में प्रथम आते थे। रामन ने ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ में बी. ए. में प्रवेश लिया। 1905 में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले वह अकेले छात्र थे और उन्हें उस वर्ष का ‘स्वर्ण पदक’ भी प्राप्त हुआ। उन्होंने ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ से ही एम. ए. में प्रवेश लिया और मुख्य विषय के रूप में भौतिक शास्त्र को लिया।

एम. ए. करते हुए रामन कक्षा में यदा-कदा ही जाते थे। प्रोफ़ेसर आर. एल. जॉन्स जानते थे कि यह लड़का अपनी देखभाल स्वयं कर सकता है। इसलिए वह उसे स्वतंत्रतापूर्वक पढ़ने देते थे। आमतौर पर रामन कॉलेज की प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग और खोजें करते रहते। वह प्रोफ़ेसर का ‘फ़ेबरी-पिराट इन्टरफ़ेरोमीटर’ का इस्तेमाल करके प्रकाश की किरणों को नापने का प्रयास करते।

वेंकटरामन ब्रिटेन के प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की ‘एम. आर. सी. लेबोरेट्रीज़ ऑफ़ म्यलूकुलर बायोलोजी’ के स्ट्रकचरल स्टडीज़ विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक थे। सन 1921 में ऑक्सफोर्ड, इंग्लैंड में हो रही यूनिवर्सटीज कांग्रेस के लिए रामन को निमन्त्रण मिला। उनके जीवन में इससे एक नया मोड़ आया।

सामान्यतः समुद्री यात्रा उकता देने वाली होती है क्योंकि नीचे समुद्र और ऊपर आकाश के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता है। लेकिन रामन के लिए आकाश और सागर वैज्ञानिक दिलचस्पी की चीज़ें थीं। भूमध्य सागर के नीलेपन ने रामन को बहुत आकर्षित किया। वह सोचने लगे कि सागर और आकाश का रंग ऐसा नीला क्यों है। नीलेपन का क्या कारण है।

रामन जानते थे लॉर्ड रेले ने आकाश के नीलेपन का कारण हवा में पाये जाने वाले नाइट्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं द्वारा सूर्य के प्रकाश की किरणों का छितराना माना है। लॉर्ड रेले ने यह कहा था कि सागर का नीलापन मात्र आकाश का प्रतिबिम्ब है। लेकिन भूमध्य सागर के नीलेपन को देखकर उन्हें लॉर्ड रेले के स्पष्टीकरण से संतोष नहीं हुआ।

जहाज़ के डेक पर खड़े-खड़े ही उन्होंने इस नीलेपन के कारण की खोज का निश्चय किया। वह लपक कर नीचे गये और एक उपकरण लेकर डेक पर आये, जिससे वह यह परीक्षण कर सकें कि समुद्र का नीलापन प्रतिबिम्ब प्रकाश है या कुछ और। उन्होंने पाया कि समुद्र का नीलापन उसके भीतर से ही था। प्रसन्न होकर उन्होंने इस विषय पर कलकत्ते की प्रयोगशाला में खोज करने का निश्चय किया।

जब भी रामन कोई प्राकृतिक घटना देखते तो वह सदा सवाल करते—ऐसा क्यों है। यही एक सच्चा वैज्ञानिक होने की विशेषता और प्रमाण है। लन्दन में स्थान और चीज़ों को देखते हुए रामन ने विस्परिंग गैलरी में छोटे-छोटे प्रयोग किये।

कलकत्ता लौटने पर उन्होंने समुद्री पानी के अणुओं द्वारा प्रकाश छितराने के कारण का और फिर तरह-तरह के लेंस, द्रव और गैसों का अध्ययन किया। प्रयोगों के दौरान उन्हें पता चला कि समुद्र के नीलेपन का कारण सूर्य की रोशनी पड़ने पर समुद्री पानी के अणुओं द्वारा नीले प्रकाश का छितराना है। सूर्य के प्रकाश के बाकी रंग मिल जाते हैं।

एक बार जब रामन अपने छात्रों के साथ द्रव के अणुओं द्वारा प्रकाश को छितराने का अध्ययन कर रहे थे कि उन्हें ‘रामन इफेक्ट’ का संकेत मिला। सूर्य के प्रकाश की एक किरण को एक छोटे से छेद से निकाला गया और फिर बेन्जीन जैसे द्रव में से गुज़रने दिया गया। दूसरे छोर से डायरेक्ट विज़न स्पेक्ट्रोस्कोप द्वारा छितरे प्रकाश—स्पेक्ट्रम को देखा गया।

सूर्य का प्रकाश एक छोटे से छेद में से आ रहा था जो छितरी हुई किरण रेखा या रेखाओं की तरह दिखाई दे रहा था। इन रेखाओं के अतिरिक्त रामन और उनके छात्रों ने स्पेक्ट्रम में कुछ असाधारण रेखाएँ भी देखीं। उनका विचार था कि ये रेखाएँ द्रव की अशुद्धता के कारण थीं। इसलिए उन्होंने द्रव को शुद्ध किया और फिर से देखा, मगर रेखाएँ फिर भी बनी रहीं। उन्होंने यह प्रयोग अन्य द्रवों के साथ भी किया तो भी रेखाएँ दिखाई देती रहीं।

इन रेखाओं का अन्वेषण कुछ वर्षों तक चलता रहा, इससे कुछ विशेष परिणाम नहीं निकला। रामन सोचते रहे कि ये रेखाएँ क्या हैं। एक बार उन्होंने सोचा कि इन रेखाओं का कारण प्रकाश की कणीय प्रकृति है। ये आधुनिक भौतिकी के आरम्भिक दिन थे। तब यह एक नया सिद्धांत था कि प्रकाश एक लहर की तरह भी और कण की तरह भी व्यवहार करता है।

विदेश यात्रा के समय उनके जीवन में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटित हुई। सरल शब्दों में पानी के जहाज़ से उन्होंने भू-मध्य सागर के गहरे नीले पानी को देखा। इस नीले पानी को देखकर श्री रामन के मन में विचार आया कि यह नीला रंग पानी का है या नीले आकाश का सिर्फ़ परावर्तन। बाद में रामन ने इस घटना को अपनी खोज द्वारा समझाया कि यह नीला रंग न पानी का है न ही आकाश का।

यह नीला रंग तो पानी तथा हवा के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से उत्पन्न होता है क्योंकि प्रकीर्णन की घटना में सूर्य के प्रकाश के सभी अवयवी रंग अवशोषित कर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं, परंतु नीले प्रकाश को वापस परावर्तित कर दिया जाता है। सात साल की कड़ी मेहनत के बाद रामन ने इस रहस्य के कारणों को खोजा था। उनकी यह खोज ‘रामन प्रभाव’ के नाम से प्रसिद्ध है।

साभार – विज्ञान विश्व

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