लखीमपुर-खीरी: पितरों को तारे कौन, यहां तो जीते जी अपनों ने भेज दिया वृद्धाश्रम

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लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। यह महीना पित्रपक्ष का है लोग अपने पित्रों को तारने के लिए पिंडदान और श्राद्धकर्म करते हैं लेकिन इसी समाज में तमाम ऐसे अभागे लोग भी हैं जो अपने परिवार से दूर वृद्धाश्रम में रहने को विवश है। परिवारिक सहनशीलता का कम होना आज परिवार के वृद्धों पर भारी पड़ रहा है। …

लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। यह महीना पित्रपक्ष का है लोग अपने पित्रों को तारने के लिए पिंडदान और श्राद्धकर्म करते हैं लेकिन इसी समाज में तमाम ऐसे अभागे लोग भी हैं जो अपने परिवार से दूर वृद्धाश्रम में रहने को विवश है। परिवारिक सहनशीलता का कम होना आज परिवार के वृद्धों पर भारी पड़ रहा है। परिवार के मायने बदल गए है। परिवार का अर्थ केवल पति पत्नी और बच्चों तक सिमट कर रह गया है। यही कारण है वृद्धाश्रम में निराश्रित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। सबकी अपनी-अपनी कहानी है और उसमें एक दर्द भी है जो वे किसी से बताने में भी संकोच करते है। यही सच है आज के समाज का।

परिवारों में बढ़ती स्वार्थ की भावना रिश्तों की डोर को तोड़ रही है। यह दर्द मंगलवार को शहर के सलेमपुर कोन में स्थित वृद्धाश्रम में देखने को मिला। यहां स्वास्थ्य विभाग ने वृद्धाश्रम में रह रहे निराश्रित लोगों के लिए शिविर लगाया था। वृद्धाश्रम में करीब 55 लोग रहते हैं इनमें महिलाएं भी हैं और पुरूष भी। सबकी अपनी अपनी कहानी है। इसमें कई लोगों को सुनने की समस्या है तो कई की आंखों में दिक्कत है। अब यह लोग पूरी तरह से सरकार के रहमोकरम पर जिंदा है।

हालांकि इसमें कुछ लोग ऐसे हैं जो अकेले ही हैं जिनके परिवार के नाम पर कोई नहीं है। उन्हे कोई दुख भी नहीं है लेकिन तमाम ऐसे लोग भी हैं जिनके परिवार में सभी सदस्य है। लड़के हैं लड़किया है और बहू भी लेकिन उनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। हालांकि अभी तक उनके मन में परिवार की इज्जत और प्रतिष्ठा की चिंता है। जब अमृतविचार की टीम ने उनके दर्द को सुनने की कोशिश की तो उन्होंने इसे अखबार में न छापने का भी अनुरोध किया। उनकेे मन में कहीं न कहीं अपने परिवार की प्रतिष्ठा की चिंता अभी तक है। वे जिस हाल में हैं खुश है लेकिन परिवार की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देना चाहते।

बदला हुआ नाम रामश्री ने बताया कि उनके बेटा भी है पोते भी हैं बहू है पिछली होली में बहू ने उन्हें पीटा और घर से निकाल दिया वे कहां जातीं किसी ने वृद्धाश्रम का रास्ता बता दिया छह माह से यहीं है। बेटा एक बार यहां आया भी लेकिन उन्हें नहीं ले गया। गीता काल्पनिक नाम ने बताया कि उनके चार लड़किया हैं लेकिन दामाद उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ गया। काल्पनिक नाम सावित्री देवी ने भी कुछ अपना दर्द इसी तरह बताया कि उनके भी सौतेला बेटा और पोते पोतियां हैं लेकिन की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। यहां रह रहे तमाम वृद्धों की कहानी भी कुछ इसी तरह है।

अपनो की याद में निकल आते हैं आंसू
वृद्धाश्रम में रह रहे तमाम लोगों को भले ही स्वार्थों में पड़कर उनके परिवार के लोग भूल गए हों लेकिन उनके मन में अपनों का प्यार कम नहीं हुआ है। वे अब भी अपनों को याद कर भावुक हो जाते हैं। उन्हें इस बात का दर्द भी है कि उनके अपने उनसे मिलने तक नहीं आते है। अब वे यहां रह रहे लोगांे को ही अपना परिवार मानने लगे हैं लेकिन इसके बाद भी उन्हें अपनों की याद बहुत सताती है। वे अपना दर्द किसी से कह भी नहीं सकते है।

पित्रपक्ष में भी नहीं आई मां बाप की याद
यह पित्रपक्ष का समय है लोग अपने पितरों के लिए पिंडदान,श्राद्ध आदि कर्म करते हैं। घरों में आयोजन करते हैं लेकिन यहां जिनके माता पिता वृद्धाश्रम में रहते हैं उनके परिवार के लोग उनका हालचाल जानने भी यहां नहीं आए। यही आज के समय की सच्चाई है। दिखावा पसंद लोग स्वार्थों में पड़कर अपनों को भूल गए। वृद्धाश्रम में भी उनका हालचाल लेने नहीं आए।

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