अल्मोड़ा: जंगल की आग की चपेट में आए दूसरे लीसा श्रमिक की भी नहीं बच पाई जान

अल्मोड़ा: जंगल की आग की चपेट में आए दूसरे लीसा श्रमिक की भी नहीं बच पाई जान

अल्मोड़ा, अमृत विचार। बीते गुरुवार को सोमेश्वर विधानसभा के स्यूनराकोट गांव के जंगल में लगी आग की चपेट में आए एक और श्रमिक ने उपचार के दौरान बेस अस्पताल में गुरुवार की देर रात दम तोड़ दिया। वनाग्नि की इस भीषण घटना में एक श्रमिक की पहले की मौत हो चुकी है। जबकि दाे गंभीर महिला श्रमिकाें को गंभीर हालत में हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल रेफर किया गया है। जो जिंदगी और मौत से जूझ रही हैं। इस भीषण अग्निकांड में अब तक दो लोगों की असमय दर्दनाक मौत हो चुकी है।

गुरुवार की शाम सोमेश्वर विधानसभा के स्यूनराकोट गांव के जंगल में भीषण आग लग गई थी। आग लगने के कारण जंगल में लीसा निकालने का काम कर रहे चार नेपाली श्रमिक जंगल की आग में बुरी तरह फंस गए। हादसे में एक नेपाली श्रमिक दीपक (35) ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। जबकि उसी पत्नी तारा उर्फ शीला (30), ज्ञान बहादुर (40) और उसकी पत्नी पूजा (28) जंगल की आग की लपटों में बुरी तरह झुलस गए थे।

आनन फानन में ठेकेदार रमेश भाकुनी ने ग्रामीणों की मदद से तीनों घायलों को उपचार के लिए अल्मोड़ा मेडिकल कालेज के बेस परिसर में भर्ती कराया। जहां देर रात उपचार के दौरान ज्ञान बहादुर ने भी दम तोड़ दिया। चिकित्सकों ने बताया कि हादसे में गंभीर रूप से झुलसी दोनों महिलाओं को उनकी गंभीर हालत को देखते हुए रात में ही हायर सेंटर एसटीएच हल्द्वानी रेफर कर दिया गया था। इधर इस भयानक हादसे के बाद अब वन विभाग के हाथ पांव भी फूले हुए हैं। घटना की गंभीरता को देखते हुए डीएफओ दीपक सिंह ने इस मामले में पुलिस को लिखित शिकायत दी है। जिसके बाद पुलिस ने वन अधिनियम के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी है। 

वन विभाग की कार्यप्रणाली पर उठने लगे सवाल 
गुरुवार को स्यूनराकोट में हुए भीषण वनाग्नि हादसे के बाद अब वन विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान उठने लगे हैं। सूत्रों का कहना है कि वनाग्नि को रोकने के लिए हर साल वन विभाग लाखों करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाता है। फायर सीजन में फायर वाचरों की तैनाती, क्रू स्टेशनों की स्थापना के साथ ही जंगलों में गश्त के नाम पर पैसा पानी की तरह बहाया जाता है।

लेकिन इसके बाद भी जंगलों की आग को रोकने में विभाग लगातार नाकाम साबित हो रहा है। विभाग की इसी लापरवाही का परिणाम है कि दो जून की रोटी की जुगत में जंगल में लीसा दोहन का काम कर रहे नेपाली मजदूरों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।